कुल पेज दृश्य

बुधवार, 17 जून 2015

navgeet: bela -sanjiv

नवगीत:
बेला
संजीव
*
मगन मन महका 
*
प्रणय के अंकुर उगे
फागुन लगे सावन.
पवन संग पल्लव उड़े
है कहाँ मनभावन?
खिलीं कलियाँ मुस्कुरा
भँवरे करें गायन-
सुमन सुरभित श्वेत
वेणी पहन मन चहका
मगन मन महका
*
अगिन सपने, निपट अपने
मोतिया गजरा.
चढ़ गया सिर, चीटियों से
लिपटकर निखरा
श्वेत-श्यामल गंग-जमुना
जल-लहर बिखरा.
लालिमामय उषा-संध्या
सँग 'सलिल' दहका.
मगन मन महका
*
१२.६.२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर

कोई टिप्पणी नहीं: