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मंगलवार, 2 जून 2015

muktika: sanjiv

मुक्तिका सलिला:
सन्जीव
*
ये पूजता वो लगाता है ठोकर
पत्थर कहे आदमी है या जोकर?

वही काट पाते फसल खेत से जो
गये थे जमीं में कभी आप बोकर

हकीकत है ये आप मानें, न मानें
अधूरे रहेंगे मुझे ख्वाब खोकर

कोशिश हूँ मैं हाथ मेरा न छोड़ें
चलें मंजिलों तक मुझे मौन ढोकर

मेहनत ही सबसे बड़ी है नियामत 
कहता है इंसान रिक्शे में सोकर 

केवल कमाया न किंचित लुटाया 
निश्चित वही जाएगा आप रोकर

हूँ संजीव शब्दों से सच्ची सखावत 
करी, पूर्णता पा मगर शून्य होकर 
***

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