दोहा सलिला:
संजीव
*
नयन कह रहे हैं ग़ज़ल, दोहा है मुस्कान
अधर गीत, है नासिका मुक्तक रस की खान
*
कहें सूर को कब रही, आँखों की दरकार
मन-आँखों में विराजे, जब बाँके सरकार
*
वदन बदन नम नयन नभ, वसन नील अभिराम
नील मेघ नत नमन कर, बरसे हुए प्रणाम
*
राधा आ भा हरि कहें, आभा उषा ललाम
आराधा पल-पल जिसे, है गुलाम बेदाम
*
संजीव
*
नयन कह रहे हैं ग़ज़ल, दोहा है मुस्कान
अधर गीत, है नासिका मुक्तक रस की खान
*
कहें सूर को कब रही, आँखों की दरकार
मन-आँखों में विराजे, जब बाँके सरकार
*
वदन बदन नम नयन नभ, वसन नील अभिराम
नील मेघ नत नमन कर, बरसे हुए प्रणाम
*
राधा आ भा हरि कहें, आभा उषा ललाम
आराधा पल-पल जिसे, है गुलाम बेदाम
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें