नवगीत :
संजीव
*
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
शेर पिट रहा है सियार से
नगद न जीता है उधार से
कचरा बिकता है प्रचार से
जूता पोलिश का
ब्रश ले मुँह
पर रगड़ा
मूँछ ऐंठकर ऊँछूंगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
चरखे से आज़ादी पाई
छत्तीस इंची छाती भाई
जुमलों से ही की कुडमाई
अच्छे दिन आये
मत रोओ
चुप सोओ
उलझा-सुलझा बूझूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
देश माँगता खेत भुला दो
जिस-तिस का झंडा फहरा दो
सैनिक मारो फिर लौटा दो
दुनिया घूमूँगा
देश भक्त मैं
हूँ सशक्त मैं
नित ढिंढोरा पीटूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
संजीव
*
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
शेर पिट रहा है सियार से
नगद न जीता है उधार से
कचरा बिकता है प्रचार से
जूता पोलिश का
ब्रश ले मुँह
पर रगड़ा
मूँछ ऐंठकर ऊँछूंगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
चरखे से आज़ादी पाई
छत्तीस इंची छाती भाई
जुमलों से ही की कुडमाई
अच्छे दिन आये
मत रोओ
चुप सोओ
उलझा-सुलझा बूझूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
देश माँगता खेत भुला दो
जिस-तिस का झंडा फहरा दो
सैनिक मारो फिर लौटा दो
दुनिया घूमूँगा
देश भक्त मैं
हूँ सशक्त मैं
नित ढिंढोरा पीटूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें