एक प्रयोग-
मुक्तक मुक्तिका :
संजीव
*
न हास है, न रास है
अनंत प्यास-त्रास है
जड़ें न हैं जमीन में
गगन में न उजास है
लक्ष्य क्यों उदास है?
थका-चुका प्रयास है.
कशिश न कोशिशें रुकें
हुलास ही हुलास है
न आम है, न ख़ास है
भविष्य तो कयास है
मालियों से पूछिए
सुवास तो सुवास है
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