मुक्तक:
संजीव
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आँसू-नहाओ तो
दिल में बसाओ तो
कंकर से शंकर हो
सर पर चढ़ाओ तो
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आँसू नहीं नियम बंधन हैं
आँसू नहीं प्रलय संगम हैं
आँसू ममता स्नेह प्रेम हैं-
आँसू नहीं चरण-चुम्बन हैं
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आँसू ये अगड़े हैं, किंचित न पिछड़े हैं
गीतों के मुखड़े हैं, दुनिया के दुखड़े हैं
शबनम के कतरे हैं, कविता की सतरें हैं
ग़ज़लों की बहरें हैं, सागर से गहरे हैं
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चंद पल आँसू बहाकर भूल जाते हैं
गलत है आरोप, हम गंगा नहाते हैं
श्राद्ध करते ले ह्रदय के भाव अँजुरी में-
चादरें सुधियों की चुप मन में तहाते हैं
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शक न उल्फत पर हुआ विश्वास पर शक आपको.
हौसलों पर शक नहीं है, ख्वाब पर शक आपको..
हौसलों पर शक नहीं है, ख्वाब पर शक आपको..
त्रास को करते पराजित, प्रयासों का साथ दे-
आँसुओं पर है भरोसा, हास पर शक आपको..
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