नवगीत:
संजीव
*
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
*
हँसकर गले लगाइये
या हाथ मिलायें
तीरे-नज़र से दिल,
छुरे से पीठ बचायें
हैं आम तो न ख़ास से
तकरार कीजिए-
जो कीजिए तो झूठ
न इल्जाम लगायें
इल्हाम हो न हो
नहीं किरदार गिरायें
कैसे भी हो
हालात
न जेबें खँगालिये
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
*
दिल से भले भुलाइये
नीचे न गिरायें
यादें न सही जाएँ तो
चुपके से सिरायें
माने न मन तो फिर
मना इसरार कीजिए-
इकरार कीजिए
अगर तो शीश चढ़ायें
जो पाठ खुद पढ़ा नहीं
न आप पढ़ायें
बच्चे बिगड़ न जाएँ
हो सच्चे
सम्हालिए
पगड़ी हो
या हो दिल
न किसी का उछालिये
*
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