सोरठा सलिला
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मन में है संतोष, पुष्पा-पुष्पांशी मिलीं।
हुआ स्नेह का घोष, सारस्वत कलियाँ खिलीं।।
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पढ़ तोमर इतिहास, मिली एक ही सीख।
ऐक्य नहीं तो मर, आक्रांत से हारकर।।
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मृगनयनी के नैन, मान बसा दिल हारकर।
जागा अनगिन रैन, मान मानिनी का हुआ।।
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महल गूजरी देख, प्रेम कहानी कह रहा।
मान मान निज भूल, रूप छटा लख तह रहा।।
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हर घर ले सुख-श्वास, सास-बहू मंदिर बने।
नीर-क्षीर आभास, नेह नर्मदा बन बहे।।
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ग्वालिप ऋषि तप लीन, रहे ग्वालियर क्षेत्र में।
कोई सका न छीन, गौरव कवि भवभूति का।।
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झुका हुआ है शीश, बलिदानी को यादकर।
कृपा करें जगदीश, घर घर लछमीबाई हों।।
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संजीव,
४-१०-२०२१
ए १/९ श्रीधाम एक्सप्रेस
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021
सोरठा सलिला
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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