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सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

मुक्तिका बात

मुक्तिका
बात 
संजीव
*

उनसे मेरी बात हो गई
शह देकर भी मात हो गई
*
थी उम्मीद प्रभात मिलेगा
लेकिन असमय रात हो गई
*
सन्नाटा कोलाहल बुनता
ज्यों आदम की जात हो गई
*
होश गँवाकर साँस-साँस खुद
यादों की बारात हो गई
*
जब से रब से जोड़ा नाता
कही मुक्तिका नात हो गई
*
ग्वालियर
१-१०-२०२१
९४२५१८३२४४

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