कार्यशाला:
दो कवि रचना एक:
सोहन 'सलिल' - संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भावों की टोली फँसी, किसी खोह के बीच।
मन के गोताखोर हम, लाए सुरक्षित खींच।। -सोहन 'सलिल'
लाए सुरक्षित खींच, अकविता की चट्टानें।
कर न सकीं नुकसान, छंद थे सीना ताने।।
हुई अंतत: जीत,बिंब-रस की नावों की।
अलंकार-लय लिखें, जय कथा फिर भावों की।। संजीव 'सलिल'
***
दो कवि रचना एक:
सोहन 'सलिल' - संजीव वर्मा 'सलिल'
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भावों की टोली फँसी, किसी खोह के बीच।
मन के गोताखोर हम, लाए सुरक्षित खींच।। -सोहन 'सलिल'
लाए सुरक्षित खींच, अकविता की चट्टानें।
कर न सकीं नुकसान, छंद थे सीना ताने।।
हुई अंतत: जीत,बिंब-रस की नावों की।
अलंकार-लय लिखें, जय कथा फिर भावों की।। संजीव 'सलिल'
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