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सोमवार, 2 मई 2011

ताजमहल मकबरा नहीं तेजो महालय (तेजपुंज शिव का मंदिर)




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ताजमहल मकबरा नहीं तेजो महालय (तेजपुंज शिव का मंदिर)

दुनिया के ७ आश्चर्यों में से एक  भारत के आगरा जिले में सहित ताजमहल को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा  उसकी अनेक बेगमों में से एक मुमताजमहल की याद में बनवाया गया मकबरा बताया जाता है जबकि सत्य इसके सर्वथा विपरीत है. अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य हैं की यह भवन मूलतः शिव मंदिर था जिसे राजपूत राजाओं ने अपने इष्टदेव को समर्पित किया था तथा इसका शेष भाग राजपूत राजाओं का निवास था. मुगलों ने सत्तासीन होने पर राजपूतों का मान मर्दन करने के लिए इसे कपटपूर्वक मुमताज़महल का मकबरा बनाने के किये हथिया लिया और अपने दरबारी इतिहासकारों से झूठा इतिहास लिखवा लिया कि इसे शाहजहाँ ने दिवंगत बेगम की याद में बनवाया. यह विडम्बना है कि देश स्वतंत्र होने पर भारत सरकार के एक विभाग सर्वे ऑफ़ इंडिया के विद्वान् महानिर्देशक स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा प्रामाणिक खोजकर लिखी गयी किताब 'ताजमहल राजपूती महल था' में प्रस्तुत निष्कर्षों की उपेक्षा की गयी और जनता को सत्य से दूर रखा गया. यहाँ प्रस्तुत है ताजमहल के तेजो महालय होने संबंधी प्रमाण:
 
भवन के अंदर पानी का कुआँ ...
 
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ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य

निर्मित छत...... cid:part3.09080704.08060501@oracle.com
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....

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शिखर के ठीक पास का दृश्य.........
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आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....

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प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........
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ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........
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पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........
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विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....
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मकबरे के पास संगीतालय........एक विरोधाभास.........

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ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........

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निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........

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दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ....

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निचले तल पर जाने के लिए सीढियां........

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कमरों के मध्य 
300फीट लंबा गलियारा..cid:part16.05080508.04010801@oracle.com 
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे से एक कमरा... 
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२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......

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अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य.. 
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एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत

 

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ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....

 

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दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....

 

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बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए, गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......

 

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बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......

 

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बादशाहनामा के अनुसार,, इस स्थान पर मुमताज को दफनाया गया....

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प्रो. पी.जी.ओक ने अपनी शोधपरक पुस्तक 'ताजमहल राजपूती महल था' जो अंग्रेजी में  "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" शीर्षक से छपी में प्रमाणित किया कि ताजमहल बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर (तेजो महालय) था. 
 
 शाहजहाँ ने जयपुर के राजा जयसिंह से अवैध तरीके से छीनकर मकबरे में बदल दिया था किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी इमारत से हिन्दू मंदिर होने के चिन्ह पूरी तरह नहीं मिटाये जा सके.
  
  शाहजहाँ के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखे गए बादशाहनामा में मुग़ल शासन का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा पृष्ठों मे वर्णित है. खंड एक केपृष्ठ 402 - 403 के अनुसारशाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफनाने के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया. बाद में उसे महाराजा जयसिंह से वफादारी के नाम पर जबरदस्ती छीने गए एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में  पुनः दफनाया गया, लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के प्रति वफादारी का वास्ता दिए जाने पर दबाव में देने के लिये मजबूर हो गये थे.जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में शाहजहाँ द्वारा तेजो महालय समर्पित करने के लिये राजा जयसिंहको दिये गये दोनों आदेश अब तक सुरक्षित हैं. मुग़ल काल मेंमृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिये प्रायः हिन्दुओं के मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था.हुमायूँअकबरएतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.
  
प्रो. ओक ने सही लिखा है कि
"महलशब्दअफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश मेंभवनों के लिए प्रयोग नहीं किया जाता.'महल' शब्द मुमताज महल से लिए जाने का कुतर्क आधारहीन है क्योंकिशाहजहाँ की बेगम का नाम मुमताज महल नहीं मुमताज-उल-ज़मानी था दूसरा किसीभवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज) का ही प्रयोग कर प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ना समझ से परे है... 
  
प्रो.ओक ने ठीक कहा है किमुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है.शाहजहाँ के समय के शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करते.
  

 तेजो महालय मुग़ल काल के पहले निर्मित भगवान् शिव को समर्पित मंदिर तथा जयपुर के राजपरिवार का आवास था. 

  न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पूर्व का है.

 
  मुमताज की मृत्यु १६३१ में हुई थी. उसी वर्ष के अंग्रेज पर्यटक पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि  ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
 
   यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने मुमताज की मृत्यु के साल बादसन् १६३८  में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया परन्तु उसने ताज के बनने का कोइ उल्लेख नहीं किया. जबकि कहा जाता है कि ताज का निर्माण १६३१ से १६५१  तक जोर-शोर से हो रहा था.

 
   फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा, के यात्रा वृत्तान्त के अनुसार औरंगजेब के शासन काल में यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया था कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.

 
   प्रो. ओक. ने अनेक आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित है जो प्रमाणित करते हैं कि ताजमहल विशाल मकबरा न होकर केवलहिंदू शिव मन्दिर है.आज भी ताजमहल के कई कक्ष शाहजहाँ के काल से बंद हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे सत्य को अपने दमन में समेटे हैं.हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि चिन्हों का प्रयोग सर्वज्ञात है. ताज में ये प्रतीक अनेक स्थानों पर हैं.
 

   ताज महल के सम्बन्ध में किवदंती है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है. पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद-बूँद पानी नहीं टपकाया जाता, जबकि हर हिंदू शिव मन्दिर में शिवलिंग पर बूँद-बूँद कर पानी टपकाने का विधान है.
  

  राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से जब्त कर लीं तथा इनके प्रथम संस्करण छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगतने की धमकियाँ दीं.


प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाये और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे.
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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ( जो 'पी. एन. ओक' के नाम से प्रसिद्ध हैं और जो 'नेताजी सुभाष चन्द्र बोस' की 'आजाद हिंद फ़ौज' में रहकर भारत के स्वाधीनता-संग्राम में भाग ले चुके हैं) ने "ताजमहल" के विषय में एक पुस्तक लिखी है जिसमें "ताजमहल" को वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा "भगवान शिव का मन्दिर" सिद्ध किया गया है

इसके अलावा भी----- श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अन्य अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं | इन सभी पुस्तकों में भी यही सिद्ध किया गया है कि---- भारत देश के प्राय: सभी प्राचीन भवन हिन्दुओं द्वारा बनवाये गये थे और फिर जब बाद में मुसलमानों ने हमारे भारत देश पर आक्रमण किया तो उन्होंने उन भवनों पर जबरन कब्जा कर लिया था |

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं, उन पुस्तकों को कोई भी व्यक्ति गलत सिद्ध नहीं कर पाया है |

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा लिखी गई सभी पुस्तकों को------ "हिंदी साहित्य सदन, १०/५४, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, करौल बाग़, नई दिल्ली..पिन-- ११०००५" ने छापा है | जिसे शंका हो, इन पुस्तकों को मँगाकर पढ़ लें |

बेनामी ने कहा…

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ( जो 'पी. एन. ओक' के नाम से प्रसिद्ध हैं और जो 'नेताजी सुभाष चन्द्र बोस' की 'आजाद हिंद फ़ौज' में रहकर भारत के स्वाधीनता-संग्राम में भाग ले चुके हैं) ने "ताजमहल" के विषय में एक पुस्तक लिखी है जिसमें "ताजमहल" को वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा "भगवान शिव का मन्दिर" सिद्ध किया गया है

इसके अलावा भी----- श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अन्य अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं | इन सभी पुस्तकों में भी यही सिद्ध किया गया है कि---- भारत देश के प्राय: सभी प्राचीन भवन हिन्दुओं द्वारा बनवाये गये थे और फिर जब बाद में मुसलमानों ने हमारे भारत देश पर आक्रमण किया तो उन्होंने उन भवनों पर जबरन कब्जा कर लिया था |

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं, उन पुस्तकों को कोई भी व्यक्ति गलत सिद्ध नहीं कर पाया है |

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा लिखी गई सभी पुस्तकों को------ "हिंदी साहित्य सदन, १०/५४, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, करौल बाग़, नई दिल्ली..पिन-- ११०००५" ने छापा है | जिसे शंका हो, इन पुस्तकों को मँगाकर पढ़ लें |