आचार्य हैं सलिल जी, कविता में उद्यत: दोहे-- ईकविता, २९ मई २०११
आचार्य हैं सलिल जी, कविता में उद्यत
कूल नर्मदा पर रहें, पावन ज्यों अमृत
आशु-लेखन में नहीं उनका सानी कोय
शब्द लिखे जो लेखनी, अमर तुरत ही होय
सीधा सरल स्वभाव है, कटु वचनों से दूर
व्यसन उन्हें है एक ही, कविता से मज़बूर
मुक्त-हृदय कविता करें, मन कविता की आग
वे आए तो जग गए ईकविता के भाग
धन-धन हे आचार्य जी, हमहू कर लो शिष्य
बन जाए साहित्य में हमरा तनिक भविष्य.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२९ मई २०११
--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
आचार्य हैं सलिल जी, कविता में उद्यत
कूल नर्मदा पर रहें, पावन ज्यों अमृत
आशु-लेखन में नहीं उनका सानी कोय
शब्द लिखे जो लेखनी, अमर तुरत ही होय
सीधा सरल स्वभाव है, कटु वचनों से दूर
व्यसन उन्हें है एक ही, कविता से मज़बूर
मुक्त-हृदय कविता करें, मन कविता की आग
वे आए तो जग गए ईकविता के भाग
धन-धन हे आचार्य जी, हमहू कर लो शिष्य
बन जाए साहित्य में हमरा तनिक भविष्य.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२९ मई २०११
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(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
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