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रविवार, 29 मई 2011

मुक्तिका: हमेशा भीड़ में... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
हमेशा भीड़ में...
संजीव 'सलिल'
*
हमेशा भीड़ में फिर भी अकेलापन मेरी किस्मत.
किया कुछ भी नहीं फिर भी लगी मुझ पर सदा तोहमत.

कहे इंसान से ईश्वर 'न अब होता सहन तू रुक.
न मुझ पर पेड़-पर्वत पर तनिक तो कर दे तू रहमत..

न होती इन्तेहाँ आतंक की, ज़ुल्मो-सितम की क्यों?
कहे छलनी समय से तन मेरा 'तज अब मुझे घिस मत'..

बहस होती रही बरसों न पर निष्कर्ष कुछ निकला.
नहीं कोई समझ पाया कि क्यों बढ़ती रही नफरत..

किया नीलाम ईमां को सड़क पर बेहिचक जिसने.
बना है पाक दावा कर रहा बेदाग़ है अस्मत..

मिले जब 'सलिल' तब खिल सुमन जग सुवासित करता.
न काँटे रोक पाते अधूरी उनकी रही हसरत..
*

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