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शुक्रवार, 13 मई 2011

नवगीत पलाश... संजीव वर्मा 'सलिल

नवगीत                                                                                          
पलाश...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..

शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
किंशुक कुसुम तप्त अंगारा,
सहता उर की आग.
टेसू संत तपस्यारत हो
गाता होरी-फाग..
राग-विराग समान इसे हैं-
कहता जग से जाग.
पद-बल सम्मुख शीश झुका मत
रण को छोड़ न भाग..

जोड़-घटाना छोड़,
काम कर ऊँची रखना पाग..
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
****

1 टिप्पणी:

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

वाह बहुत खूब,
पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई।
कार्यशाला में शामिल कर रहे हैं।

पूर्णिमा वर्मन