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मंगलवार, 10 मई 2011

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद - घनाक्षरी कवित्त : नवीन चतुर्वेदी

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद - घनाक्षरी कवित्त

नवीन चतुर्वेदी 

कवित्त का विधान
कुल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "लाए हैं" से और समाप्त भी होता है "लाए हैं" से

सांगोपांग विधान
ये मुझे प्रात:स्मरणीय गुरुवर स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी ने बताया कि छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| वो इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|


कवित्त:
लाए हैं बाजार से दीप भाँति भाँति के हम,
द्वार औ दरीचों पे कतार से सजाए हैं|
सजाए हैं बाजार हाट लोगों ने, जिन्हें देख-
बाल बच्चे खुशी से फूले ना समाए हैं|
समाए हैं संदेशे सौहार्द के दीपावली में,
युगों से इसे हम मनाते चले आए हैं|
आए हैं जलाने दीप खुशियों के जमाने में,
प्यार की सौगात भी अपने साथ लाए हैं|| 
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