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गुरुवार, 19 मई 2011

मुक्तिका: लोगों संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
लोगों
संजीव 'सलिल'
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कुछ तो बोलो न चुप रहो लोगों.
सच है जैसा-जहाँ, कहो लोगों..

जो गलत है उसे सहन न करो.
देश दहके न यूँ दहो लोगों..

नर्मदा नेह की न मैली हो.
तोड़ तटबंध मत बहो लोगों..

भेद मत के रहें, न मन में हों.
हँस के मत-भिन्नता सहो लोगों..

आधुनिकता के साथ-साथ चलो.
कुछ पुरातन भी संग गहो लोगों..

ढाई आखर की बाँचकर पोथी.
ज्यों की त्यों चदरिया तहों लोगों..

चूक हो तो सुधार भी लो 'सलिल'
हो सजग, दुबारा न हो लोगों..
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