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बुधवार, 11 मई 2011

मुक्तिका: जिस शाख पर ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
जिस शाख पर
---संजीव 'सलिल'
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जिस शाख पर पंछी-पखेरू बस, नहीं पलते.
वे वृक्ष तो फलकर भी दुनिया में नहीं फलते..

हैं लक्ष्य से पग दूर जो हर पल नहीं चलते.
संकल्प बिन बाधाओं के पर्वत नहीं टलते..

जो ऊगकर दें रौशनी, जग पूजता उनको.
यश-सूर्य उनकी कीर्ति के ढलकर नहीं ढलते..

मत दया साँपों पर करो, मत दूध पिलाओ.
किस संपेरे को ये संपोले हैं नहीं छलते?.

क्यों कुचलते कंकर को हो?, इनमें बसे शंकर.
ये दिलजले हैं मौन, धूप में नहीं गलते..

फूल से शूलों ने खिलना ही नहीं सीखा.
रूप दीवाने भ्रमर को ये नहीं खलते..

शठ न शठता को कभी भी छोड़ पाता है.
साधु जाते हैं ठगे पर कर नहीं मलते..

मिटकर भी 'सलिल' तप्त तन- का ताप हर लेता.
अंगार भी संगत में आकर फिर नहीं जलते..

दीवाली तब तक कभी होती नहीं 'सलिल'
जब तक महल में कुटी संग दीपक नहीं जलते..

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