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शनिवार, 28 मई 2011

मुक्तिका: ज़रा सी जिद ने --संजीव 'सलिल'


मुक्तिका: 
ज़रा सी जिद ने
संजीव 'सलिल'   
 
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है. 
की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..  

ज़माने ने न जाने किससे कब-कब क्या कराया है. 
दिया लालच, सिखा धोखा,  दगा-दंगा कराया है.. 

उसूलों की लगा बोली, करा नीलाम ईमां भी. 
न सच खुल जाये सबके सामने, परदा कराया है.. 

तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.  
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..   

सधा मतलब तो अपना बन गले से था लिया लिपटा. 
नहीं मतलब तो बिन मतलब झगड़ पंगा कराया है.. 

वो पछताते है लेकिन भूल कैसे मिट सके बोलो- 
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.. 

न सपने और नपने कभी अपने होते सच मानो.
डुबा सूरज को चंदा ने ही अँधियारा कराया है..  

सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता- 
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है.. 

बही बारिश में निज मर्याद लज्जा शर्म तज नदिया. 
'सलिल' पर्वत पिता ने तजा, जल मैला कराया है..

***

7 टिप्‍पणियां:

Dharmendra kumar singh 'sajjan' ने कहा…

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बहुत ही सुंदर रचना है आचार्य जी। आपकी कलम को नमन और बहुत बहुत बधाई

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

Ganesh Jee "Bagi"

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..

खुबसूरत मतला |

तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..

अरे वाह , इस शे'र में तो मेरा भी नाम है, धन्यवाद आचार्य जी |



सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी'सलिल'होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..

बही बारिश में निज मर्याद लज्जा शर्म तज नदिया
'सलिल' पर्वत पिता ने तजा,जल मैला कराया है



बहुत खूब एक शे'र में दो दो मकता, बढ़िया प्रयोग, तरही का मिसरा भी दो जगह प्रयोग किया गया है, बहुत खूब ,आचार्य जी खुबसूरत मुक्तिका हेतु बधाई स्वीकार कीजिये |

Yograj Prabhakar ने कहा…

Yograj Prabhakar
शानदार और जानदार मुक्तिका आचार्य जी - बधाई स्वीकार करें !

PREETAM TIWARY(PREET) ने कहा…

PREETAM TIWARY(PREET)

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..



बहुत ही खुबसूरत रचना आचार्य जी.... बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने...

Tilak Raj Kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

'लीजिये अब तो कोई शिकायत नहीं' के अंदाज़ में खूबसूरत ग़ज़ल।

तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..

में तो आपने यहॉं उपस्थित दल को ही बॉंध दिया।

Ravi Kumar Guru ने कहा…

Ravi Kumar Guru

सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..

khubsurat lajabab

Dr. Sanjay dani ने कहा…

सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी सलिल होता,

मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है।

ख़ूबसूरत शे'र आदरणीय सलिल जी को बहुत बहुत बधाई।