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शनिवार, 6 जून 2020

छंद हरिगीतिका

एक प्रयोग-
छंद हरिगीतिका 
चलता न बस, मिलता न जस, तपकर विहँस, सच मान रे
इंसान ही भगवान है, नहिं ज्ञात तू  वह जान रे 
उगता सतत, रवि मौन रह, कब चाहता, युग दाम दे
तप तू करे, संयम धरे, कब माँगता, मनु नाम दे
कल्ले बढ़ें, हिल-मिल चढ़ें, नित नव छुएँ, ऊँचाइयाँ
जंगल सजे, घाटी हँसे, गिरि पर न हों तन्हाइयाँ
परिमल बिखर, छू ले शिखर, धरती सिहर, जय-जय कहे
फल्ली खटर-खट-खट बजे, करतल सहित दूरी तजे
जब तक न मानव काट ले या गिरा दे तूफ़ान आ
तब तक खिला रह धूप - आतप सह, धरा-जंगल सजा
जयगान तेरा करेंगे कवि, पूर्णिमा के संग मिल
नव कल्पना की अल्पना लख ज्योत्सना जाएगी खिल

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६-६-२०१६ 

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