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रविवार, 31 मई 2020

अभियान २८ : कला पर्व

समाचार: 

२८वां दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : कला  पर्व 
हरियाली मानसिक तनाव मिटाकर स्वास्थ्य-सुख देती है - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
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जबलपुर, ३१-५-२०२०। संस्कारधानी जबलपुर की प्रतिष्ठित संस्था विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के २८ वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान कला पर्व के अंतर्गत विविध विषयों पर व्यापक विमर्श किया गया। संस्था तथा कार्यक्रम के संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कला को मानव के जन्म से मरण तक के सांसारिक-आत्मिक, व्यावहारिक-भावनात्मक क्रिया व्यवहार में सुरुचि और सौंदर्य का प्रवाह करनेवाली आदि शक्ति बताया। उद्घोषक छाया सक्सेना ने आरंभ में मुखिया डॉ. इला घोष व पाहुना रजनी शर्मा 'बस्तरिया' का शब्द-सुमन स्वागत पश्चात् मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' की मधु-मिश्रित वाणी में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा रचित सरस्वती वंदना के दोहों का गायन कराया-

"कर गायत्री वंदना, जप सावित्री नाम
वीणापाणी हो सदय शुभदा ललित ललाम'
वागीश्वरी स्वर शब्द दें, लय-रस से परिपूर्ण
नीरस-सरस झुलस मिटे, सरस् सलिल संपूर्ण
अरुण उषा कर वंदना, मुकुलमना हो धन्य
मनोरमा छाया मिले, सिद्धेश्वरी अनन्य
सपना भारत भारती, हों चंदा आलोक
प्रभा पुनिता रमन कर, ज्योतित कर दें लोक
सफल साधना कर सलिल, इला-उमा के साथ
कृपा मुद्रिका अनामिका, पहने बने सनाथ
कृष्ण कान्त आशीष पा, हो रजनी भी प्रात
गान करे अरविन्दहो, धन्य ससीम प्रभात
सात सुरों की स्वामिनी, मातु पुनीता दिव्य
करो अज्ञ को विज्ञ माँ, दमक तारिका भव्य"

दतिया से पधारे डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' ने विमर्श का श्री गणेश करते हुए वार्तालाप कला के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालते हुए इशब्द चयन व् भाषा ज्ञान को आवश्यक बताया। प्रीति मिश्रा ने पेंटिंग कला के अंतर्गत झाड़ू व माचिस की तीलियों, मोटी रेत व ग्लिटर का प्रयोग कर पेंटिंग बनाने की जानकारी साझा की। डाल्टनगंज कजारखंड के श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने 'जिसे देख-सुन के सुख मिले उस क्रिया को कला बताया। विद्वान वक्त ने चंद्र की १५ तथा सूर्य की १२ कलाओं की भी चर्चा की।

दुर्गा शर्मा जी ने वायलिन वाद्य यंत्र की चर्चा करते हुए उसका सरस वादन कर श्रोताओं का मन मोह लिया। रजनी शर्मा रायपुर ने बैठक कक्ष सज्जा के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। प्रो। रेखा कुमारी सिंह जपला पलामू ने पाक कला के महत्त्व और प्रासंगिकता को महत्वपूर्ण बताया। डॉ. भावना दीक्षित जबलपुर ने सिलाई व् कसीदाकारी की जानकारी देते हुए पुराने हो चके कपड़ों का प्रयोग कर नया रूप देते हुए अन्य कार्य में प्रयोग करने के नमूने दिखाए। दमोह के डॉ. अनिल कुमार जैन ने राग यमन पर आधारित चित्रलेखा फिल्म के साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित भजन ''मन रे! तू काहे न धीर धरे'' का गायन किया। दमोह से सम्मिलित हो रही बबीता चौबे शक्ति ने तिलक कला पर प्रकाश डालते हुए विविध प्रकारों के तिलक तथा उनके प्रयोग की जानकारी दी। मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने कला के प्रकारों पर प्रकाश डाला तथा उसका उद्देश्य जीवन को सत्यं-शिवं-सुंदरं का पर्याय बनाना बताया।

इंजी अरुण भटनागर ने अभिवादन कला के महत्व तथा प्रयोग पर विमर्श किया। डॉ. मुकुल तिवारी ने विविध साग-सब्जियों का प्रयोग कर भोजन के इमेज को सज्जित करने के नमूने प्रस्तुत किये। चंदादेवी स्वर्णकार से कला को जीवन की पूर्णता हेतु आवश्यक बताया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने मंदिर निर्माण कला पर प्रकाश डालते हुए. मंदिर वे अंगोपांगों तथा शैलियों आदि की जानकारी दी। डॉ. सुमन लता श्रीवास्तव ने संगीत कला पर विद्वतापूर्ण विमर्श करते हुए नाद को सृष्टि का मूल बताया। पटल पर प्रवेश करते हुए श्रुति रिछारिया ने नर्तन कला पर विचार करते हुए जन्म के साथ ही मनुष्य में इस कला का विकास होना बताया। उन्होंने नृत्य कला को देव दनुज मनुज के लिए अपरिहार्य बताते हुए नटराज और नटनागर का उल्लेख किया। सपना सराफ ने स्वलिखित गीत प्रस्तुत किया। वरिष्ठ साहित्यकार राजलक्ष्मी शिवहरे ने वाचिक तथा लिखित अभिव्यक्ति की समानता व् भिन्नता का उल्लेख करते हुए, नवोदितों का मार्गदर्शन किया। पलामू झारखंड के डॉ. आलोकरंजन ने कला के विविध वर्गों का विश्लेषण किया। उद्घोषणा कर रही कहानीकार-कवयित्री छाया सक्सेना ने भगवान् के भोग हेतु फलाहारी व्यंजनों की थाली तथा शाकाहारी थाली की सज्जा पर प्रकाश डाला।

पाहुना रजनी शर्मा 'बस्तरिया' ने विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के ३० दिवसीय दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान को अभूतपूर्व बताया। उन्होंने इन अनुष्ठानों को विश्वद्यालयीन संगोष्ठियों की तुलना में अधिक उपयोगी बताया। मुखिया डॉ. इला घोष के अपने वक्तव्य में भारतीय कला में हस्तकौशल, बौद्धिक वैभव, हार्दिक सौंदर्य और आत्मिक आनंद का मणि-कांचन समन्वय होना बताया। विश्ववाणी हिंदी संस्थान के अथक प्रयास को सराहते हुए विदुषी वक्ता ने ऐसे आयोजनों की आवृत्ति की कामना की।
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