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रविवार, 24 मई 2020

गीत:

गीत:
संजीव 'सलिल'
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तन-मन, जग-जीवन झुलसाता काला कूट धुआँ.
सच का शंकर हँस पी जाता, सारा झूट धुआँ....
आशा तरसी, आँखें बरसीं,
श्वासा करती जंग.
गायन कर गीतों का, पाती
हर पल नवल उमंग.
रागी अंतस ओढ़े चोला भगवा-जूट धुआँ.....
पंडित हुए प्रवीण, ढाई
आखर से अनजाने.
अर्थ-अनर्थ कर रहे
श्रोता सुनें- नहीं माने.
धर्म-मर्म पर रहा भरोसा, जाता छूट धुआँ.....
आस्था-निष्ठां की नीलामी
खुले आम होती.
बेगैरत हँसते हैं, गैरत
सुबह-शाम रोती.
अनजाने-अनचाहे जाता धीरज टूट धुआँ...
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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