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सोमवार, 25 मई 2020

कार्यशाला : दोहे - सपना सराफ

कार्यशाला : दोहे - सपना सराफ
 वारिद छाये कृष्ण वर्ण विरहणी छोड़े निःश्वास,
आ जाओ अब तो बालम पिया मिलन की आस।

राह तकत प्रहर बीते आ जाओ मैं हारी,
तुम ही तो हो मेरे कान्हा मैं राधा हूँ तिहारी।  x

प्रतिक्षण मेरे नयन बहें अश्रु भी हो गये शुष्क,
साजन तिहारा नाम ले ले के अधर हो गये रुक्ष।

बरखा की लग गई झड़ी दमक रही है चपला,
प्रिय तुमरी मैं बाट निहारूँ आँखें हो गईं सजला।  x

हर आहट पर भागी आऊँ खोलूँ जब-जब द्वार,
तुम्हें ना पाऊँ चपल दामिनी से होवें आँखें चार।
*
वारिद छाए श्याम लख, विरहिन छोड़े श्वास
राह ताकें नैना थकें, पिया मिलन की आस

राह निरख बीते प्रहर,  टेर रही मैं हार
कान्हा मेरे हो तुम्हीं, नाव लगाओ पार

अश्रु बहे पल पल हुए, मेरे नैना शुष्क
साजन तुझको टेरकर, अधर हो गए खुश्क

झड़ी लग गई गगन से, चपला करती भीत
बाट हेरती मैं विकल, कहीं न हो अनरीत

हर आहट पर भागकर, आऊँ खोलूँ द्वार
तुम गायब हों तड़ित से, व्याकुल नैना चार

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