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शुक्रवार, 29 मई 2020

अभियान २६ : स्मरण पर्व

ॐ  
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर 
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com 

समाचार: 

२६ वां दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : स्मरण पर्व 
अलंकार काव्य को सुरुचिपूर्ण बनाते हैं - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 

जबलपुर, २९-५-२०२०। संस्कारधानी जबलपुर की प्रतिष्ठित संस्था विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान के २६ वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान स्मरण पर्व के अंतर्गत साहित्यकारों ने अपने मनपसंद दिवंगत साहित्यकारों के अवदान तथा व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को याद किया। इस विमर्श का श्री गणेश वागेश्वरी सरस्वती जी के पूजार्चन से हुआ। सुमधुर स्वर में मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित सरस्वती वंदना ''हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!! अब विमल मति दे'' जिसे भारत के समस्त सरस्वती शिशु मंदिरों में दैनिक प्रार्थना के रूप में लगभग ३ दशकों से अगणित विद्यार्थियों द्वारा गया जाता है, का गायन किया। मुखिया की आसंदी पर सुशोभित हुईं हिंदी-बुंदेली की वरिष्ठ कहानीकार-कवयित्री लक्ष्मी शर्मा जी।  पाहुने की आसंदी पर प्रतिष्ठित हुईं भीलवाड़ा की बाल शिक्षाविद-कवयित्री पुनीता भारद्वाज। कासगंज उत्तर प्रदेश से पधारे विशेष अतिथि अखिलेश सक्सेना द्वारा अतिथि द्वय के स्वागतोपरांत विषय प्रवर्तन करते हुए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने दिवंगत साहित्यकारों, वर्तमान साहित्यकारों तथा उभरते साहित्यकारों के मध्य सृजन सेतु स्थापित करने के के लिए ऐसे कार्यक्रम की उपादेयता प्रतिपादित की।
विमर्श का आरंभ करते हुए नगर की प्रतिष्ठित शिक्षिका-समाजसेविका-कवयित्री-नाटककार साधना उपाध्याय जी ने "भगवान पिता मत बनो, बनो तुम माता / माता का सबसे अच्छा लगता नाता'' जैसी बाल कविता रचने वाले उमरखैय्याम की रुबाइयों का हिंदी में सबसे पहले काव्यानुवाद करने वाले केशव पाठक के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला। ओजस्वी कवि अभय तिवारी ने बच्चन जी की पहली कविता प्रेमा पत्रिका में प्रकाशित करनेवाले रामानुजलाल श्रीवास्तव ''ऊँट बिलहरीवी'' पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान की जेल यात्रा  पर रची गयी कालजयी रचना सुनाई-
''जानते हैं सब तुम्हें तुम उग्र हो उद्द्ण्डिका हो
आग हो तूफ़ान हो भूचाल ही रणचण्डिका हो
खून से अपने लिखी हड़कंप रानी झाँसी की कहानी
याद है जालियां वाला बाग़ लाखो की जबानी
क्यों अभी से आग इतनी जोर से भड़का रही हो
जा रही हो''
हिंदी-बुंदेली-संस्कृत साहित्य के साथ शोधकार्य हेतु सर्वप्रशंसित सुमनलता श्रीवास्तव ने छायावाद की स्तंभ पद्म विभूषण पद्मभूषण महीयसी महादेवी जी वर्मा पर निबंध वचन करते हुए उन्हें जबलपुर की नातिन तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को उनका भतीजा होने का उल्लेख करते हुए साहित्य, गायन और चित्रकला तीनों क्षेत्रों में महीयसी के अवदान का उल्लेख किया। महीयसी के ३२ ग्रंथों का उल्लेख करते हुए विदुषी वक्त ने उनके साहित्य को समयजयी तथा भाषा को प्रांजल व् माधुर्य से परिपूर्ण बताया तथा अनेक गीतों की पंक्तियाँ सुनाईं। बाल शिक्षाविद आशा रिछारिया ने स्वातंत्र्य सत्याग्रही बालमुकुंद त्रिपाठी के व्यक्तित्व व् साहित्य की चर्चा करते हुए उन्हें हिंदी का प्रकाश दीप बताया। डॉ. वंदना दुबे ले बुंदेली साहित्य के शिखर डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव पर उनके शिष्य स्वामी प्रज्ञानंद सरस्वती द्वारा लिखित लेख का वाचन किया जिसमें पूरनचंद की शिक्षण पद्धति को अभूतपूर्व बताते हुए उनकी भाषा में बुंदेली लोकोक्तियों तथा मुहावरों की चाशनी घुली होने को याद किया। जपला झार खंड से प्रो. रेखा सिंह ने डॉ. जगदीश सिंह के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला। 
महात्मा गाँधी  के सहयोगी रहे, वाल्मीकि रामायण के हिंदी पद्यानुवादकर्ता, महर्षि अरविन्द कृत दर्शनशास्त्रीय चिंतन से संपन्न समृद्ध कृति सावित्री के प्रथम हिंदी अनुवादकर्ता ब्योहार राजेंद्र सिंह के व्यक्तित्व को सदा जीवन उच्च विचार का पर्याय बताया। ब्योहार जी के साथ नैकट्य और उनके समृद्ध पुस्तकालय में दुर्लभ पुस्तकों को सुरक्षित न रखे जा सकने को हिंदी वांग्मय की गंभीर क्षति  बताया। भीलवाड़ा से पधारी पुनिता भारदवाज ने ओजस्वी कवि शिवमंगल सिंह सुमन से संबंधित संस्मरण सुनाते हुए सुमन जी द्वारा कन्या भोज में मितव्ययिता के साथ भोजन परोसे जाने तथा भोजन के पश्चात् चवन्नी मिलने का उल्लेख करते हुए सुमन जी के व्यक्तित्व में व्याप्त सरलता को दुर्लभ बताया। देश की प्रसिद्ध पादप रोग विशेषज्ञ, कवयित्री, गायिका डॉ. अनामिका तिवारी ने अपने श्वसुर, जबलपुर के सांसद व महापौर रहे भवानी प्रसाद तिवारी को याद करते हुए  उन्हें प्रजातंत्र का जागरूक प्रहरी, संवेदनशील जन नेता तथा प्रखर साहित्यकार बताया। जबलपुर के ओजस्वी कवि हिंदी प्राध्यापक-प्राचार्य जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण' के व्यक्तित्व-कृतित्व की चर्चा की श्रीमती लक्ष्मी शर्मा ने। प्रसिद्ध समीक्षक-निबंधकार- हरिकृष्ण त्रिपाठी के प्रेरक व्यक्तित्व-कृतित्व को नगर और समाज के लिए गौरव का पर्याय बताया। माधुरी मिश्रा ने सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यकार ओंकार श्रीवास्तव 'संत' से जुड़े व्यक्तिगत संसमरण सुनते हुए उन्हें प्रेरणास्रोत आदर्श बताया। सपना सराफ ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन रचित गीत   ''जग में अँधियारा छाया था / मैं ज्वाला लेकर आया था /मैंने जलकर दी आयु बिता / पर जगती का तम हर न सका / मैं जीवन में कुछ कर न सका'' सुनाया। डॉ. मुकुल तिवारी ने सुभद्राकुमारी चौहान को स्वतंत्रता आंदोलन की प्राणशक्ति बताया। नन्हे बच्चों का मोह त्यागकर लगातार स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रियता तथा कारावास के साथ अद्भुत साहित्य सृजन को असाधारण बताया।
मीनाक्षी शर्मा ''तारिका'' ने अनूठे साहित्यकार-सांसद भगवतीचरण वर्मा के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए संक्षिप्त विवेचन किया। प्रो। आलोकरंजन पलामू ने वैद्यनाथ मिश्र उर्फ़ नागार्जुन के व्यक्तित्व-कृतित्व की एकाकारिता तथा कविता को अभिजात्यता  से मुक्ति देनेवाला बताया। आकाशवाणी उद्घोषिका, शिक्षिका बुंदेली कवयित्री प्रभा विश्वकर्मा 'शील' ने लोककवि ईसुरी को सरस्वतीपुत्र बताते हुए उन्हें श्रृंगार का अग्रदूत निरूपित किया और ईसुरी की फागों का सस्वर वाचन किया। राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षिका चंदा देवी स्वर्णकार ने स्वतंत्रता सत्याग्रही प्रभादेवी श्रॉफ की जेलयात्रा संबंधी संस्मरण सुनाये। युवा चिंतक-साधक सारांश गौतम ने विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो पर विचार व्यक्त करते हुए उन्हें २० वीं सदी के १० व्यक्तित्वों में से एक बताया। ओशो दर्शन का सम्यक विश्लेषण करते हुए सारांश ने पूर्व की प्रज्ञा और पश्चिम के विज्ञान का सम्मिश्रण ओशो के दर्शन में पाया।

इंजी. अरुण भटनागर ने महर्षि महेश योगी के अद्भुत अवदान और वेद विज्ञान संबंधी साहित्य पर प्रकाश डालते हुए उन्हें विश्व मानवता की धरोहर बताया।
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