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शुक्रवार, 29 मई 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
संजीव
*
एक न सबको कर सके, खुश है सच्ची बात
चयनक जाने पात्रता, तब ही चुनता तात
*
सिर्फ किताबी योग्यता, का ही नहीं महत्व
समझ, लगन में भी 'सलिल', कुछ तो है ही तत्व
*
संसद से कैक्टस हटा, रोपी तुलसी आज
बने शरीफ शरीफ अब, कोशिश का हो राज
*
सुख कम संयम की अधिक, शासक में हो चाह
नियम मानकर आम सम, चलकर पाये वाह
*
जो अरविन्द वही कमल, हुए न फिर भी एक
अपनी-अपनी राह चल, कार्य करें मिल नेक
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वृद्धा-रुग्णा संगिनी, घर- बाहर कर प्यार
शर्म नहीं आती जिन्हें, उनको दें दुत्कार
*
पैर कब्र की राह पर, हाथ भर रहा माँग
हवस साथ ले जा रहा, समय काँध पर टाँग
*
२९-५-२०१४

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