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मंगलवार, 26 मई 2020

मुहावरे और कहावतें



मुहावरे / इडियम्स : मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भाषा की सुंदर रचना हेतु आवश्यक माना जाता है। अपने साधारण अर्थ को छोड़ कर विशेष अर्थ को व्यक्त करने वाले वाक्यांश को मुहावरा कहते हैं। मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है ,जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘अभ्यास’ । मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता है, इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है। सामान्य अर्थ का बोध न कराकर विशेष अथवा विलक्षण अर्थ का बोध कराने वाले पदबन्ध को मुहावरा कहते हैँ। इन्हेँ वाग्धारा भी कहते हैँ।

      मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है, जो रचना मेँ अपना विशेष अर्थ प्रकट करता है। रचना मेँ भावगत सौन्दर्य की दृष्टि से मुहावरोँ का विशेष महत्त्व है। इनके प्रयोग से भाषा सरस, रोचक एवं प्रभावपूर्ण बन जाती है। इनके मूल रूप मेँ कभी परिवर्तन नहीँ होता अर्थात् इनमेँ से किसी भी शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त नहीँ किया जा सकता। हाँ, क्रिया पद मेँ काल, पुरुष, वचन आदि के अनुसार परिवर्तन अवश्य होता है। मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। मुहावरे के प्रयोग से वाक्य मेँ व्यंग्यार्थ उत्पन्न होता है। अतः मुहावरे का शाब्दिक अर्थ न लेकर उसका भावार्थ ग्रहण करना चाहिए।
कहावतें / लोकोक्तियाँ / प्रोवर्ब या फोकलोर  : साधारणतया लोक में प्रचलित उक्तियों को लोकोक्ति कहा जाता है। लोक अनुभव से उपजी उक्तियों को लोकोक्ति कहा जाता है। यह समाज द्वारा लम्बे अनुभव से अर्जित किये गए ज्ञान या सत्य की वाक्य या वाक्यांश में की गई अभिव्यक्ति है।  लोकोक्तियाँ अंतर्कथाओं से भी संबंध रखती हैं। लोकोक्तियाँ स्वतंत्र वाक्य होती हैं, जिनमें एक पूरा भाव छिपा रहता है। किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्ति' कहते हैं। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
उदाहरण- 'उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता' ।
'लोकोक्ति' शब्द 'लोक + उक्ति' शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन'। संस्कृत में 'लोकोक्ति' अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में लोकोक्ति को 'कहावत' कहा जाता है।
चूँकि लोकोक्ति का जन्म व्यक्ति द्वारा न होकर लोक द्वारा होता है अतः लोकोक्ति के रचनाकार का पता नहीं होता। इसलिए अँग्रेजी में इसकी परिभाषा दी गई है- ' A proverb is a saying without an author' अर्थात लोकोक्ति ऐसी उक्ति है जिसका कोई रचनाकार नहीं होता।
वृहद् हिंदी कोश में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-

'विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों और लोक विश्वासों आदि पर आधारित चुटीली, सारगर्भित, संक्षिप्त, लोकप्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी बात की पुष्टि, विरोध, सीख तथा भविष्य-कथन आदि के लिए किया जाता है।

'लोकोक्ति' के लिए यद्यपि सबसे अधिक मान्य पर्याय 'कहावत' ही है पर कुछ विद्वानों की राय है कि 'कहावत' शब्द 'कथावृत्त' शब्द से विकसित हुआ है अर्थात कथा पर आधारित वृत्त, अतः 'कहावत' उन्हीं लोकोक्तियों को कहा जाना चाहिए जिनके मूल में कोई कथा रही हो। जैसे 'नाच न जाने आँगन टेढ़ा' या 'अंगूर खट्टे होना' कथाओं पर आधारित लोकोक्तियाँ हैं। फिर भी आज हिंदी में लोकोक्ति तथा 'कहावत' शब्द परस्पर समानार्थी शब्दों के रूप में ही प्रचलित हो गए हैं।
लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब 'लोकोक्ति' हो जाती है।
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है 
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है 
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ नाक बजा लें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो नाक चढ़ा लें
लोकोक्ति : प्रमुख अभिलक्षण
(1) लोकोक्तियाँ ऐसे कथन या वाक्य हैं जिनके स्वरूप में समय के अंतराल के बाद भी परिवर्तन नहीं होता और न ही लोकोक्ति व्याकरण के नियमों से प्रभावित होती है। अर्थात लिंग, वचन, काल आदि का प्रभाव लोकोक्ति पर नहीं पड़ता। इसके विपरीत मुहावरों की संरचना में परिवर्तन देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए 'अपना-सा मुँह लेकर रह जाना' मुहावरे की संरचना लिंग, वचन आदि व्याकरणिक कोटि से प्रभावित होती है; जैसे-
(i) लड़का अपना सा मुँह लेकर रह गया।
(ii) लड़की अपना-सा मुँह लेकर रह गई।
जबकि लोकोक्ति में ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए 'यह मुँह मसूर की दाल' लोकोक्ति का प्रयोग प्रत्येक स्थिति में यथावत बना रहता है; जैसे-
(iii) है तो चपरासी पर कहता है कि लंबी गाड़ी खरीदूँगा। यह मुँह और मसूर की दाल।

(2) लोकोक्ति एक स्वतः पूर्ण रचना है अतः यह एक पूरे कथन के रूप में सामने आती है। भले ही लोकोक्ति वाक्य संरचना के सभी नियमों को पूरा न करे पर अपने में वह एक पूर्ण उक्ति होती है; जैसे- 'जाको राखे साइयाँ, मारि सके न कोय'।
(3) लोकोक्ति एक संक्षिप्त रचना है। लोकोक्ति अपने में पूर्ण होने के साथ-साथ संक्षिप्त भी होती है। आप लोकोक्ति में से एक शब्द भी इधर-उधर नहीं कर सकते। इसलिए लोकोक्तियों को विद्वानों ने 'गागर में सागर' भरने वाली उक्तियाँ कहा है।
(4) लोकोक्ति सारगर्भित एवं साभिप्राय होती है। इन्हीं गुणों के कारण लोकोक्तियाँ लोक प्रचलित होती हैं।
(5) लोकोक्तियाँ जीवन अनुभवों पर आधारित होती है तथा ये जीवन-अनुभव देश काल की सीमाओं से मुक्त होते हैं। जीवन के जो अनुभव भारतीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को होते हैं वे ही अनुभव योरोपीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित लोकोक्तियों में अनुभूति लगभग समान है-
(i) एक पंथ दो काज- To kill two birds with one stone.
(ii) नया नौ दिन पुराना सौ दिन- Old is gold.

(6) लोकोक्ति का एक और प्रमुख गुण है उनकी सजीवता। इसलिए वे आम आदमी की जुबान पर चढ़ी होती है।
(7) लोकोक्ति जीवन के किसी-न-किसी सत्य को उद्घाटित करती है जिससे समाज का हर व्यक्ति परिचित होता है।
(8) सामाजिक मान्यताओं एवं विश्वासों से जुड़े होने के कारण अधिकांश लोकोक्तियाँ लोकप्रिय होती है।
(9) चुटीलापन भी लोकोक्ति की प्रमुख विशेषता है। उनमें एक पैनापन होता है। इसलिए व्यक्ति अपनी बात की पुष्टि के लिए लोकोक्ति का सहारा लेता है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरेलोकोक्तियाँ
(1) मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण वाक्य नहीं; जैसे- अपना उल्लू सीधा करना, कलम तोड़ना आदि। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता तब ये संरचनागत पूर्णता प्राप्त करती है।(1) लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। भाषा में प्रयोग की दृष्टि से विद्यमान रहती है; जैसे- चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात।
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है।(2) लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।(3) लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।
(4) वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के कारण परिवर्तन होता है; जैसे- आँखें पथरा जाना।
प्रयोग- पति का इंतजार करते-करते माला की आँखें पथरा गयीं।
(4) लोकोक्तियों में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए।
प्रयोग- वह अपनी योग्यता की डींगे मारता रहता है जबकि वह कितना योग्य है सब जानते हैं। उसके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि 'अधजल गगरी छलकत जाए।
(5) मुहावरों का अंत प्रायः इनफीनीटिव 'ना' युक्त क्रियाओं के साथ होता है; जैसे- हवा हो जाना, होश उड़ जाना, सिर पर चढ़ना, हाथ फैलाना आदि।(5) लोकोक्तियों के लिए यह शर्त जरूरी नहीं है। चूँकि लोकोक्तियाँ स्वतः पूर्ण वाक्य हैं अतः उनका अंत क्रिया के किसी भी रूप से हो सकता है; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए, अंधी पीसे कुत्ता खाए, आ बैल मुझे मार, इस हाथ दे, उस हाथ ले, अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।
(6) मुहावरे किसी स्थिति या क्रिया की ओर संकेत करते हैं; जैसे हाथ मलना, मुँह फुलाना?(6) लोकोक्तियाँ जीवन के भोगे हुए यथार्थ को व्यंजित करती हैं; जैसे- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती, नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
(7) मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं।(7) लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में प्रयुक्त किया जाता है।
(8) मुहावरों से निकलने वाला अर्थ लक्ष्यार्थ होता है जो लक्षणा शक्ति से निकलता है।(8) लोकोक्तियों के अर्थ व्यंजना शक्ति से निकलने के कारण व्यंग्यार्थ के स्तर के होते हैं।
(9) मुहावरे 'तर्क' पर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता;
जैसे- ओखली में सिर देना, घाव पर नमक छिड़कना, छाती पर मूँग दलना।
(9) लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं; जैसे-
तर्कपूर्ण :
(i) काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।
(ii) एक हाथ से ताली नहीं बजती।
(iii) आम के आम गुठलियों के दाम।
तर्कशून्य :
(i) छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।
(10) मुहावरे अतिशय पूर्ण नहीं होते।(10) लोकोक्तियाँ अतिशयोक्तियाँ बन जाती हैं।
 दोहा यमक मुहावरा
संजीव 'सलिल'
*
घाव हरे हो गये हैं, झरे हरे तरु पात.
शाख-शाख पर कर रहा, मनुज-दनुज आघात..
*
उठ कर से कर चुकाकर, चुका नहीं ईमान.
निर्गुण-सगुण  न मनुज ही, हैं खुद श्री भगवान..
*
चुटकी भर सिंदूर से, जीवन भर का साथ.
लिये हाथ में हाथ हँस, जिएँ उठाकर माथ..
*
सौ तन जैसे शत्रु के, सौतन लाई साथ.
रख दूरी दो हाथ की, करती दो-दो हाथ..
*
टाँग अड़ाकर तोड़ ली, खुद ही अपनी टाँग.
दर्द सहन करते मगर, टाँग न पाये टाँग..
*
कन्याएँ हडताल पर, बैठीं लेकर माँग.
युव आगे आकर भरें, बिन दहेज़ ले माँग..
*
काट नाक के बाल हैं, वे प्रसन्न फिलहाल.
करा नाक के बाल ने, हर दिन नया बवाल..
*
मुहावरे
  • अक्ल का अंधा- मूर्ख व्यक्ति; जिसमें समझ न हो।
  • अक्ल घास चरने जाना- समझ का अभाव होना।
  • अक्ल का दुश्मन- मूर्ख व्यक्ति।
  • अगर-मगर करना- आनाकानी या टालमटोल करना; बहाने बनाना।
  • अपना उल्लू सीधा करना- अपना मतलब निकालना।
  • अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना- अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
  • अपने पैरों पर खड़ा होना- स्वावलंबी होना।
  • आस्तीन का साँप- किसी अपने या निकट व्यक्ति द्वारा धोखा देना, कपटी मित्र।
  • आसमान से बातें करना- बहुत ऊँचा होना या तेज़ गति वाला।
  • आँख का तारा- बहुत प्रिय होना।
  • आँखें खुलना- जागना, वास्तविकता से अवगत होना, भ्रम दूर होना, सचेत होना।
  • आँखें चार होना- प्रेम होना, आमना-सामना होना।
  • आँखों में धूल झोंकना- धोखा देना।
  • अंगार उगलना- अत्यंत क्रुद्ध होकर अपशब्द कहना।
  • अंधे की लाठी- एकमात्र सहारा।
  • उखड़ी-उखड़ी बातें करना- अन्यमनस्क होना या उदासीन बातें करना।
  • उन्नीस-बीस का अंतर होना- बहुत कम अंतर होना।
  • उल्टी गंगा बहाना- विपरीत चलना।
  • उड़ती चिड़िया के पर गिनना- रहस्य की बात दूर से जान लेना।
  • इज़्ज़त ख़ाक में मिलना- परिवारिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचना।
  • ईद का चाँद होना- बहुत दिनों बाद दिखाई पड़ना।
  • ईंट से ईंट बजाना- पूरी तरह से नष्ट करना।
  • ईंट का जबाब पत्थर से देना- ज़बरदस्त बदला लेना; करारा जवाब देना।
  • कान भरना- किसी के ख़िलाफ़ किसी के मन में कोई बात बैठाना।
  • कूच करना- जाना; प्रस्थान करना; चले जाना।
  • ख़ून पसीना एक करना- कड़ी मेहनत करना।
  • घोड़े बेचकर सोना- हर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाना; बिल्कुल निश्चिंत हो जाना; किसी प्रकार की चिन्ता न करना।
  • घी के दिये जलाना- अत्यधिक प्रसन्न होना; खुशियाँ मनाना; प्रसन्नता ज़ाहिर करना।
  • चार चाँद लगाना- किसी सुन्दर वस्तु को और सुन्दर बनाना; किसी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना; किसी को ज़्यादा मान-सम्मान देना।
  • चैन की सांस लेना- काम निपटाकर निश्चिन्त होना; कार्य पूर्ण होने पर शान्ति महसूस करना।
  • चोली-दामन का साथ होना- गहरी मित्रता होना; अत्यधिक घनिष्ठता होना; बहुत मधुर सम्बन्ध होना।
  • चिकना घड़ा होना- बेशर्म होना; किसी बात का प्रभाव न पड़ना; अपमान होने पर भी अपमानित महसूस न करना; किसी की लिहाज़ न करना।
  • चुल्लू भर पानी में डूबना- लज्जित होना; अपमानित होना।
  • छक्के छुड़ाना- बुरी तरह हराना; अपने से बलवान पर विजय प्राप्त करना।
  • छाती पर मूँग दलना- पास रहकर कष्ट देना।
  • जान में जान आना- मुसीबत से निकलने पर निश्चिंत होना।
  • जले/ घाव पर नमक छिड़कना- दुःखी को और अधिक दुःखी करना; किसी का काम खराब होने पर हंसी उड़ाना।
  • दाहिना हाथ होना- बहुत बड़ा सहायक होना।
  • दाँत खट्टे करना- प्रतिद्वंद्विता या लड़ाई में पछाड़ना।
  • दुम हिलाना- दीनतापूर्वक प्रसन्नता प्रकट करना।
  • नील का टीका लगाना- कलंक लगाना, कलंकित करना।
  • सिर ओखली में देना- व्यर्थ ही जान-बूझकर जोख़िम में पड़ना।
  • टोपी पहनाना- बेवकूफ़ बनाना; झाँसा देना।
  • हवा में गाँठ लगाना- बड़े-बड़े दावे करना; असम्भव कार्य को करने का दम भरना।
  • हाथ-खड़े कर देना- असमर्थता जताना; वक्त पर मदद से इन्कार करना।
  • हाथ धोना- गँवा देना।
  • हाथ पाँव मारना- प्रयास करना।
  • पानी देना- सींचना, तर्पण करना।
  • पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर- पास में रहकर ख़तरनाक व्यक्ति से दुश्मनी रखना।
  • पासा पलटना- अच्छा से बुरा या बुरा से अच्छा भाग्य होना; भाग्य का अनुकूल से प्रतिकूल या प्रतिकूल से अनुकूल होना।
  • पीठ दिखाना- कायरता दिखाना, भाग जाना, विमुख होना।
  • पैर पसारना- फैलाना, आराम से लेटना।
  • टोपी उछालना- अपमानित करना।
  • ठगा-सा रह जाना- बहुत छोटा महसूस करना, अपमानित महसूस करना।
लोकोक्तियाँ
  • अक्ल बड़ी या भैंस- शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का महत्व अधिक होता है |
  • अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना- सदा मूर्खतापूर्ण बातें या काम करते रहना।
  • अधजल गगरी छलकत जाए- थोड़ा होने पर अधिक दिखावा करना।
  • अपना हाथ जगन्नाथ- स्वतंत्र व्यक्ति जिसके काम में कोई दखल न दें ।
  • अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना- अपना अहित स्वयं करना।
  • अपनी अपनी डफली,अपना अपना राग- विचारो का बेमेल होना|
  • अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत- समय गुज़रने पर पछतावा करने से कोई लाभ नहीं होता।
  • अशर्फ़ियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना- मूल्यवान वस्तु भले ही जाए, पर तुच्छ चीज़ों को बचाना।
  • आसमान से गिरा खजूर में अटका- एक विपत्ति से निकलकर दूसरी में उलझना |
  • आप भला सो जग भला- स्वयं सही हो तो सारा संसार ठीक लगता है |
  • आगे कुआँ पीछे खाई- हर तरफ परेशानी होना; विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना |
  • आगे नाथ न पीछे पगहा- कोई भी जिम्मेदारी न होना; पूर्णत: बंधनरहित होना |
  • आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास- इच्छितकार्य न कर पाने पर कोई अन्य कार्य कर लेना|
  • आटे के साथ घुन भी पिसता है- अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड पा जाताहै |
  • अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा- जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय ही होता है।
  • अंधों में काना राजा- मूर्खों में थोड़ा सा ज्ञानी।
  • अंधी पीसे कुत्ता खाये- परिश्रमी व्यक्ति के असावधानी पर अन्य व्यक्ति का उपभोग करना|
  • आम के आम गुठलियों के दाम- दुहरा लाभ होना |
  • आँख का अँधा, नाम नैनसुख- गुण न होने पर भी गुण का दिखावा करना।
  • ओखली मे सिर दिया तो मूसल से क्या डर- कठिन कार्यो में उलझ कर विपत्तियों से क्या घबराना |
  • एक अनार सौ बीमार- समान कम चाहने वाले बहुत ।
  • एक और एक ग्यारह- एकता मे शक्ति होती है |
  • एक पंथ दो काज- एक प्रयत्न से दोहरा लाभ।
  • एक तो चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी- गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना|
  • एक हाथ से ताली नही बजती- झगड़ा एक ओर से नही होता |
  • एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा- अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना |
  • एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती- एक स्थान पर दो विचारधारायें नहीं रह सकतीं हैं|
  • उल्टा चोर कोतवाल को डांटे- अपना अपराध स्वीकार करने की बजाय पूछने वाले को दोष देना।
  • ऊँट के मुँह मे ज़ीरा- बड़ी आवश्यकता के लिये कम देना।
  • कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली- दो असमान व्यक्तियों का मेल न होना |
  • कंगाली में आटा गीला- कमी में और नुकसान होना |
  • कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा- इधर -उधर से उल्टे सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना |
  • कौवा चला हंस की चाल- अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न |
  • खोदा पहाड़ निकली चुहिया- बहुत प्रयत्न करने पर कम फल प्राप्त होना |
  • खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे- दूसरे के क्रोध को अनुचित स्थान पर निकालना|
  • घर का भेदी लंका ढावे- आपस की फूट विनाश कर देती है।
  • घर की मुर्गी दाल बराबर- घर की वस्तु का महत्व नहीं होता |
  • घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने- झूठी शान दिखाना |
  • चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए- अत्यधिक कंजूस होना‌।
  • चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात- सुख क्षणिक होता है |
  • चोर की दाढ़ी में तिनका- अपराध बोध से व्यक्ति सहमा-सहमा रहता है; दोषी व्यक्ति का व्यवहार उसकी असलियत उजागर कर देता है।
  • चिराग़ तले अन्धेरा होना- देने वाले का स्वयं वंचित रहना; सबका काम कराने वाले का स्वयं का काम लटका रहना; सुविधा प्रदान करने वाले को स्वयं सुविधा न मिलना।
  • छ्छूंदर के सिर पर चमेली का तेल- अयोग्य व्यक्ति को अच्छी चीज़ देना।
  • छाती पर सांप लोटना- ईर्ष्या होना ।
  • छोटा मुँह बड़ी बात- अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।
  • छक्के छूटना- बुद्धि चकरा जाना।
  • जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई- जिसने कभी दु:ख न देखा हो वह दूसरेरे के दु:ख को नहीं समझ सकता |
  • जिसकी लाठी उस की भैंस- शक्तिशाली विजयी होता है |
  • जिसकी उतर गई लोई उसका क्या करेगा कोई- निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती|
  • झूठ के पांव नहीं होते- झूठ ज़्यादा दिन तक नहीं ठहरता है।
  • ढाक के वही तीन पात- परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.
  • डूबते हुए को तिनके का सहारा- घोर संकट मे जरा सी सहायता ही काफी होती है |
  • थोथा चना बाजे घना- ओछा आदमी ज्यादा डींग हाँकता है |
  • दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते- मुफ्त की वस्तु का अच्छा बुरा नहीं देखा जाता |
  • दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम- दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नही होता ।
  • दूध का दूध ,पानी का पानी- उचित न्याय ,विवेकपूर्ण न्याय ।
  • धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का- अस्थिर व्यक्ति प्रभावहीन होता है |
  • नहले पर दहला- एक से बढ़कर एक।
  • न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी- झगड़े को समूल नष्ट करना |
  • न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी- कार्य न करने हेतु असम्भव शर्ते रखना |
  • नाच न जाने आँगन टेढ़ा- खुद न जानने पर बहाने बनाना |
  • नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली ढोंगी व्यक्ति- जीवन भर पाप करने के बाद बुढ़ापे मे धर्मात्मा होने का ढोंग करना |
  • पगड़ी उछालना- अपमानित करना|
  • पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखे कुदरत का खेल- भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिये विवश होना |
  • बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा- वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिये अपने आस -पास नजर न डालना|
  • बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभानअल्लाह- छोटे का बड़े से भी अधिक चालाक होना |
  • बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद- किसी के गुणों को न जान कर उसके महत्व को न समझ सकना |
  • बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख- माँगने पर कुछ नहीं मिलता है |
  • भागते चोर/भूत के लँगोटी ही सही- कुछ न मिलने पर जो भी मिला वही अच्छा |
  • भैंस के आगे बीन बजाना- मूर्ख के सामने ज्ञान की बातें करना व्यर्थ है|
  • मान न मान मैं तेरा मेहमान- व्यर्थ मे गले पड़ना |
  • मुख मे राम बगल में छुरी- ऊपर से भला बनकर धोखा देना |
  • ये मुंह और मसूर की दाल- अपनी औक़ात से बाहर की बात होना|
  • सौ सुनार की एक लुहार की- सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा बुद्धिमान व्यक्तिकम प्रयत्न मे लाभ पा लेता है ।
  • हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या- प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती|
  • हाथ पसारना/फैलाना- किसी से विवशतापूर्ण माँगना।
  • हाथ –पाँव फूल जाना- डर से घबराना।
  • होनहार बिरवान के होत चीकने पात- प्रतिभा बचपन से दिखाई देती है|

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