कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 22 मई 2020

गीत

गीत 
*
पूजन से
पापों का क्षय
हो पाता तो
सारे पापी
देव पूजकर तर जाते।
गुप्त न रहता चित्र
मनुज के कर्मों का
गीतकार
नित हत्यारों के गुण गाते ।
*
कर्मयोग की सीख, न अर्जुन को मिलती
सूर्य न करता मेहनत, साँझ नहीं ढलती।
बाँझ न होती नींव, न दबकर चुप रहती-
महक बिखेर न कली, भ्रमर खातिर खिलती।
सृजन अगर
तापों का भय
हर पाता तो,
सारे सर्जक
निहित सर्जना
घर लाते।
*
स्वेद न गंगा-जल सम, पूजा गया अगर
दौलत देख प्रेम भी, भूला गया अगर।
वादों को 'जुमला' कह, जन विश्वास-छला
लोकतंत्र की मीन निगल, जन-द्रोह-मगर
पूछेगा
जनप्रतिनिधि
आम जनों जैसा
रहन-सहन, आचरण
नहीं क्यों अपनाते?
*
संसद आकर स्नान, कुम्भ में क्यों न करे?
मतभेदों को सलिल-धार में क्यों न तजे?
पेशवाई में 'कल' की 'कल' को 'आज' वरे-
ख़ास न क्यों वह जो जनगण की पीर हरे?
प्रश्नों के उत्तर
विधायिका
खोजे तो
विनत प्रशासक
नागरिकों के दर जाते
*
२२.५.२०१६

कोई टिप्पणी नहीं: