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सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

navgeet

नवगीत  
*
आस कबीर
नहीं हो पायी
हास भले कल्याणी है
*
प्यास प्राण को
देती है गति
रास न करने
देती है मति
परछाईं बन
त्रास संग रह
रुद्ध कर रहा वाणी है
*
हाथ हाथ के
साथ रहे तो
उठा रख सकें
विनत माथ को
हाथ हाथ मिल
कर जुड़ जाए
सुख दे-पाता प्राणी है
*
नयन मिलें-लड़
झुक-उठ-बसते
नयनों में तो
जीवन हँसते
श्वास-श्वास में
घुलकर महके
जीवन चोखी ढाणी है
*

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