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गुरुवार, 11 अगस्त 2011

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक... --संजीव 'सलिल'

गले मिले दोहा यमक
*
गले मिले दोहा यमक, झपक लपक बन मीत.
गले भेद के हिम शिखर, दमके श्लेष सुप्रीत..
गले=कंठ, पिघले.

पीने दे रम जान अब, ख़त्म हुआ रमजान.
कल पाऊँ, कल का पता, किसे? सभी अनजान..
रम=शराब, जान=संबोधन, रमजान=एक महीना, कल=शांति, भविष्य.

अ-मन नहीं उन्मन मनुज, गँवा अमन बेचैन.
वमन न चिंता का किया, दमन सहे क्यों चैन??
अ-मन=मन रहित, उन्मन=बेचैन, अमन=शांति, वमन=उलटना, वापिस फेंकना, दमन=दबाना.

जिन्हें सूद प्यारा अधिक, और न्यून है मूल.
वे जड़ जाते भूल सच, जड़ न बढ़े बिन मूल..
मूल=मूलधन, उद्गम, जड़=मंदबुद्धि, पौधे की जड़.

है अजान सच से मगर, देता रोज अजान.
अलग दीखते इसलिए, ईसा रब भगवान..
अजान=अनजान, मस्जिद से की जानेवाली पुकार.

दस पर बस कैसे करे, है परबस इंसान.
दाना पाना चाहता, बिन मेहनत नादान ..
पर बस= के ऊपर नियंत्रण, परबस=अन्य के वश में.
श्लेष अलंकार:
दस=दस इन्द्रियाँ, जन्म से १० वें दिन होने वाली क्रियाएँ या दश्तौन, मृत्यु से १० वें दिन होनेवाली क्रियाएँ या प्रेत-कृत्य, दसरंग मलखंब की कसरत,
दाना=समझदार, अनाज का कण.

दहला पा दहला बहुत, हाय गँवाया दाँव.
एक मिला पाली सफल, और न चाहे ठाँव..
दहला=ताश का पता, डरा,
श्लेष अलंकार: एक=इक्का, ईश्वर. पाली=खेल की पारी, जीवन की पारी.
***

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com


16 टिप्‍पणियां:

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आ० सलिल जी
वाह, बहुत ही ह‌दयग्राही दोहे, अति सराहनीय दोहे, प्रसंशनीय दोहे। बहुत-बहुत बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह

Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
सुचिंतित दोहे|
साधुवाद!
सादर
अमित

--
अमिताभ त्रिपाठी

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
शब्दों के चमत्कार से परिपूर्ण दोहे , पढ़ते हुए विस्मित आनंद मिला |
सादर
कमल

- santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
बहुत ही नपातुला, शब्दों का चमत्कारी प्रयोग
बधाई!!!
संतोष भाऊवाला

deepti gupta ने कहा…

आदरणीय संजीव जी,
अन्य सब दोहों में यमक का प्रयोग सटीक है. किन्तु निम्नलिखित पंक्ति में दोष है. आपको लिखने से पहले हमने बहुत सोचा - हर तरह से अर्थ भी बैठाने की कोशिश की किन्तु बात नही बन रही.
दोष - 'जड़' तो स्वयम में 'मूल' है - पौधे और पेड़ का उदगम है. यहाँ 'अर्थ दोष' बन रहा है. 'जड़' का अर्थ भी उदगम और मूल है तथा ' मूल' का अर्थ भी उदगम और जड़ है. तो जड़ को बढ़ने के लिए मूल की ज़रूरत कैसे हो सकती है. उसे सिंचन या खाद , जल आदि के समानार्थी ऐसा शब्द चाहिए जो ऊपर की पंक्ति और नीचे की पंक्ति समान रूप से सही बैठे.


वे जड़ जाते भूल सच, जड़ न बढ़े बिन मूल..
मूल=मूलधन, उद्गम, जड़=मंदबुद्धि, पौधे की जड़.

सादर,
दीप्ति

sanjiv 'salil' ने कहा…

आत्मीय दीप्ति जी!
वन्दे मातरम.
मेरी बाल बुद्धि के अनुसार 'जड़' और 'मूल' के परिस्थिति अनुसार कहीं-कहीं समान और कहीं-कहीं भिन्न अर्थ होते हैं. किसी पौधे की जड़ रोपी जाए तो उसका मूल वह पौधा होगा जिसकी जड़ लाई गयी. बीज और कलम लगाते समय वे मूल हैं किन्तु जड़ तो बाद में उत्पन्न होगी. 'जड़-मूल से उखाड़ देने' की कहावत भी दोनों का भिन्न अस्तित्व बताती है.
'कंद-मूल-फल' में मूल का अर्थ जड़ से भिन्न नहीं है क्या?

मानवीय आचार-विचार में 'जड़ता' मंद बुद्धि, परिवर्तनहीन, अ-लचीला, यथास्थितिवादी होने के अर्थ में भी व्यवहृत किया जाता है.

जिन्हें सूद प्यारा अधिक, और न्यून है मूल.
वे जड़ जाते भूल सच, जड़ न बढ़े बिन मूल..
मूल=मूलधन, उद्गम, जड़=मंदबुद्धि, पौधे की जड़.
उक्त दोहे में मूल का द्वितीय अर्थ पौधे के उद्गम बीज से है जो पौधे की जड़ से भिन्न होती है तथा बाद में उत्पन्न होती है. आशय अभिव्यक्त न हो सका हो तो यह मेरी असामर्थ्य है.
त्रुटि इंगित करने हेतु आपका आभार.

शब्द कोष के अनुसार-
जड़- स्त्रीलिंग, पेड़-पौधों का वह भाग जो जमीं के अन्दर रहता है और जिसके द्वारा वे पोषण प्राप्त करते हैं, मूल, नींव, आधार, मूल कारण, मुहावरा जड़ उखाड़ना = समूल नाश करना. जड़ काटना/खोदना = तबाह करने की कोशिश करना, भारी हानि पहुँचना. जड़ जमना/पकड़ना = पौधे का अच्छी तरह से जम जाना, दृढ़ होना. जड़ में पानी देना =जड़ खोदना.
जड़ता- स्त्रीलिंग, जड़त्व पुल्लिंग, जड़ होने का भाव, अचेतनता, अज्ञान, मूर्खता, एक संचारी भाव जो उस स्तब्धता या चेश्ताहीनाता का द्योतक है जो प्रिय व्यक्ति से वियोग होने या घबराहट आदि की स्थिति में नायक/नायिका में परिलक्षित होती है. इनर्शिया- वस्तु की विराम दशा या सीधी रेखा की एक समान गति को बनाये रखने की प्रवृत्ति. तेज भागती मोटरकार जब अचानक रुकती है तो जड़त्व गुण के कारण मोटर में बैठा व्यक्ति आगे को लुढ़क जाता है.
मूल-पुल्लिंग, जड़, कंद, आदि कारण, उत्पत्तिस्थान, आरम्भ, ग्रंथकार की मूल शब्दावली, मूलधन, हाथ-पाँव का आदि भाग (भुजमूल, पादमूल), वस्तु का निचला भाग, पादप्रदेश (पर्वतमूल), चरण, २७ नक्षत्रों में से उन्नीसवाँ, गुणित राशि का मूल, निकुंज, सूरन.

"deepti gupta" Cc: "ekavita" ने कहा…

Date: Friday, 12 August, 2011, 8:28 AM

आद. कविवर संजीव जी,

पौधा रोपने लायक किसके माध्यम से होता है.....जड़ के उस लघुकाय रूप से जिसमें से वह उगना शुरू होता है. बीज या कलम जिसे आप मूल कह रहे हैं वह जड़ का पूर्व रूप ही तो हैं, संजीव जी, दरअसल दोनों शब्द इतने निकट हैं कि उनके अर्थ में भिन्नता हो पानी मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है. यह आपका या हमारा दोष नहीं है. क्योंकि मूलत: दोनों शब्द जुडवा भाई हैं. उसे मूल कह लो या जड़ एक ही बात है. हमारी बाल बुध्दि में इससे ज्यादा समझने की गुंजाइश नहीं है संजीव भाई ! जब और कोई विकल्प आपके सामने नहीं है तो आप मूल शब्द इसी तरह रहने दीजिए. शेष दोहे तो बहुत ही उत्तम हैं उनके लिए पुन: बधाई ई.....ई.....!
सादर,
दीप्ति

sanjiv 'salil' ने कहा…

आत्मीय दीप्ति जी!
जड़ का पूर्व रूप बीज या कलम है किन्तु दोनों व्यवहार जगत में एक नहीं हैं. निस्संदेह जीवों का मूल आत्मा, और आत्मा का मूल परमात्मा है किन्तु किसी जीव को आत्मा या परमात्मा केवल आध्यात्म की दृष्टि से कहा जाता है, व्यवहार में उसे उसके नाम या जाति से ही जाना जाता है. विविध कोशों में इसी दृष्टि से जड़ के दोनों प्रयोग और अर्थ दिये गये हैं.
बीज या कलम बोया न जाए तो जड़ से उसका कोई सम्बन्ध न होगा किन्तु उसका अपना अस्तित्व तो उसी के नाम से जाना जायेगा.
विवेच्य पंक्तियों में जड़ शब्द को इन दो अर्थों में ही प्रयोग किया गया है. अस्तु...
आपने पंक्तियों को ध्यान देकर आत्मसात कर इस चर्चा के माध्यम से मुझे अधिक सजग होने का अवसर प्रदान किया, आपके औदार्य को नमन. कृपया, भविष्य में भी ऐसे सत्परामर्श से उपकृत करती रहें.

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

कविवर संजीव जी,
आपने भी जिस औदार्य और अपनेपन से हमारे संकेत और जिज्ञासा को लिया - उसके लिए हम आपके आभारी हैं. हमें भी इस चर्चा से बहुत कुछ सीखने को मिला. वरना चर्चा को लोग एक जंग का रूप दे देते हैं. चर्चा वही सार्थक होती है जब दोनों पक्ष उदारता और समझदारी से सही तथ्य को खोज निकालने पर केंद्रित हों - किसी को गलत या सही सिध्द करने पर नहीं. आपने हमारे साथ चर्चा स्वस्थ तरीके से निबाही, तदहेतु आपका आभार !!
सादर,
दीप्ति

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

आचार्य जी सभी दोहे चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करते है, अलंकारों का प्रयोग रचना में चार चाँद लगा रहे है | बहुत बहुत बधाई इन मनमोहक दोहों के लिए |

Saurabh Pandey ने कहा…

श्लेष और यमक की छप्पकछैंया खेलते शब्द और उनसे उमगता शास्त्रीय चमत्कार ! आदरणीय आचार्य सलिलजी आपके दोहों ने कमाल का प्रदृश्य उपलब्ध कराया है.

//दस पर बस कैसे करे, है परबस इंसान.
दाना पाना चाहता, बिन मेहनत नादान //
इस दोहे में तो इतना कुछ भरा है और एक पाठक के तौर पर लगातार सोचते जाने के क्रम में इतना कुछ प्राप्त होता जाता है कि, सच कहूँ, तो कुछ पल के लिये शास्त्रीय ’संयम’ की स्थिति बन आती है.
[’संयम’ संदर्भ पतंजलि योग सूत्र; त्रयमेकत्र (धारणा, ध्यान, समाधि) संयमः (विभूतिपाद - 4)]

//है अजान सच से मगर, देता रोज अजान.
अलग दीखते इसलिए, ईसा रब भगवान..//
बहुत कुछ इंगित हुआ है.. बहुत खूब.

मेरी हार्दिक भावनाएँ संप्रेषित हैं, कृतार्थ करेंगे.

और अंत में, उत्सुकतावश पूछ रहा हूँ, जड़ को आपने शाखाओं का आयाम दिया है क्या ? वस्तुतः, जड़ को हमने मूल के समानान्तर देखा है.



सादर

sanjiv 'salil' ने कहा…

मेरी बाल बुद्धि के अनुसार 'जड़' और 'मूल' के परिस्थिति अनुसार कहीं-कहीं समान और कहीं-कहीं भिन्न अर्थ होते हैं. किसी पौधे की जड़ रोपी जाए तो उसका मूल वह पौधा होगा जिसकी जड़ लाई गयी. बीज और कलम लगाते समय वे मूल हैं किन्तु जड़ तो बाद में उत्पन्न होगी. 'जड़-मूल से उखाड़ देने' की कहावत भी दोनों का भिन्न अस्तित्व बताती है.
'कंद-मूल-फल' में मूल का अर्थ जड़ से भिन्न नहीं है क्या?

मानवीय आचार-विचार में 'जड़ता' मंद बुद्धि, परिवर्तनहीन, अ-लचीला, यथास्थितिवादी होने के अर्थ में भी व्यवहृत किया जाता है.

जिन्हें सूद प्यारा अधिक, और न्यून है मूल.
वे जड़ जाते भूल सच, जड़ न बढ़े बिन मूल..
मूल=मूलधन, उद्गम, जड़=मंदबुद्धि, पौधे की जड़.
उक्त दोहे में मूल का द्वितीय अर्थ पौधे के उद्गम बीज से है जो पौधे की जड़ से भिन्न होती है तथा बाद में उत्पन्न होती है. आशय अभिव्यक्त न हो सका हो तो यह मेरी असामर्थ्य है.


शब्द कोष के अनुसार-
जड़- स्त्रीलिंग, पेड़-पौधों का वह भाग जो जमीं के अन्दर रहता है और जिसके द्वारा वे पोषण प्राप्त करते हैं, मूल, नींव, आधार, मूल कारण, मुहावरा जड़ उखाड़ना = समूल नाश करना. जड़ काटना/खोदना = तबाह करने की कोशिश करना, भारी हानि पहुँचना. जड़ जमना/पकड़ना = पौधे का अच्छी तरह से जम जाना, दृढ़ होना. जड़ में पानी देना =जड़ खोदना.
जड़ता- स्त्रीलिंग, जड़त्व पुल्लिंग, जड़ होने का भाव, अचेतनता, अज्ञान, मूर्खता, एक संचारी भाव जो उस स्तब्धता या चेश्ताहीनाता का द्योतक है जो प्रिय व्यक्ति से वियोग होने या घबराहट आदि की स्थिति में नायक/नायिका में परिलक्षित होती है. इनर्शिया- वस्तु की विराम दशा या सीधी रेखा की एक समान गति को बनाये रखने की प्रवृत्ति. तेज भागती मोटरकार जब अचानक रुकती है तो जड़त्व गुण के कारण मोटर में बैठा व्यक्ति आगे को लुढ़क जाता है.
मूल-पुल्लिंग, जड़, कंद, आदि कारण, उत्पत्तिस्थान, आरम्भ, ग्रंथकार की मूल शब्दावली, मूलधन, हाथ-पाँव का आदि भाग (भुजमूल, पादमूल), वस्तु का निचला भाग, पादप्रदेश (पर्वतमूल), चरण, २७ नक्षत्रों में से उन्नीसवाँ, गुणित राशि का मूल, निकुंज, सूरन.

जड़ का पूर्व रूप बीज या कलम है किन्तु दोनों व्यवहार जगत में एक नहीं हैं. निस्संदेह जीवों का मूल आत्मा, और आत्मा का मूल परमात्मा है किन्तु किसी जीव को आत्मा या परमात्मा केवल आध्यात्म की दृष्टि से कहा जाता है, व्यवहार में उसे उसके नाम या जाति से ही जाना जाता है. विविध कोशों में इसी दृष्टि से जड़ के दोनों प्रयोग और अर्थ दिये गये हैं.
बीज या कलम बोया न जाए तो जड़ से उसका कोई सम्बन्ध न होगा किन्तु उसका अपना अस्तित्व तो उसी के नाम से जाना जायेगा.
विवेच्य पंक्तियों में जड़ शब्द को इन दो अर्थों में ही प्रयोग किया गया है. अस्तु...



आपने पंक्तियों को ध्यान देकर आत्मसात कर इस चर्चा के माध्यम से मुझे अधिक सजग होने का अवसर प्रदान किया, आपके औदार्य को नमन.

Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ने कहा…

ये आपका साहित्यिक तप है और उसका प्रतिफल जो भाव - सागर से रत्न निकाल लाते हैं और ओ बी ओ चमक उठता है | ये दोहे भी अप्रतिम अद्भुत प्रभाव वाले है | इन्हें जितनी बार पढ़ा गुना जाए कम है | ये हमारी धरोहर है | सर आँखों पर |

Saurabh Pandey ने कहा…

आदरणीय आचार्यजी,

द्वैत और विषिष्टाद्वैत के तथ्यों का संदर्भ लेती हुयी आपकी सोदाहरण व्याख्या ने मेरी उत्सुकता तथा जिज्ञासा को सम्यक रूप से संतुष्ट किया है.

सादर

Ambarish Srivastava ने कहा…

धन्य धन्य आचार्य जी, धन्य आपका बोल.
एक एक यह दोहरा, रचा बहुत अनमोल..

शेखर चतुर्वेदी ने कहा…

आचार्य जी !!
शब्दों का चमत्कारी प्रयोग रुचिता उत्पन्न करता है !! आपको ढेरों बधाई !!!