मुक्तिका:
क्यों भला?
संजीव 'सलिल'
*
दोस्त लेने दर्द आयें क्यों भला?
आह भरने सर्द आयें क्यों भला??
गर्मजोशी जवांमर्दी चाहिए.
देख चेहरा जर्द आयें क्यों भला??
सच छिपाने की जिन्हें आदत हुई.
हकीकत बेपर्द आयें क्यों भला??
सियारों का शेर से क्या वास्ता?
सामने नामर्द आयें क्यों भला??
आप तूफानी लिये रफ़्तार हैं.
राह में फिर गर्द आये क्यों भला??
दर्द का विष कंठ में धारा 'सलिल'
अब कोई हमदर्द आये क्यों भला??
*******************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें