कुण्डलियाँ:
आती उजली भोर..
संजीव 'सलिल'
*
छाती छाती ठोंककर, छा ती है चहुँ ओर.
जाग सम्हल सरकार जा, आती उजली भोर..
आती उजली भोर, न बंदिश व्यर्थ लगाओ.
जनगण-प्रतिनिधि अन्ना, को सादर बुलवाओ..
कहे 'सलिल' कविराय, ना नादिरशाही भाती.
आम आदमी खड़ा, वज्र कर अपनी छाती..
*
रामदेव से छल किया, चल शकुनी सी चाल.
अन्ना से मत कर कपट, आयेगा भूचाल..
आएगा भूचाल, पलट जायेगी सत्ता.
पल में कट जायेगा, रे मनमोहन पत्ता..
नहीं बचे सरकार नाम होगा बदनाम.
लोकपाल से क्यों डरता? कर कर इसे सलाम..
*
अनशन पर प्रतिबन्ध है, क्यों, बतला इसका राज?
जनगण-मन को कुचलना, नहीं सुहाता काज..
नहीं सुहाता काज, लाज थोड़ी तो कर ले.
क्या मुँह ले फहराय तिरंगा? सच को स्वर दे..
चोरों का सरदार बना ईमानदार मन.
तज कुर्सी आ तू भी कर ले अब तो अनशन..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
आती उजली भोर..
संजीव 'सलिल'
*
छाती छाती ठोंककर, छा ती है चहुँ ओर.
जाग सम्हल सरकार जा, आती उजली भोर..
आती उजली भोर, न बंदिश व्यर्थ लगाओ.
जनगण-प्रतिनिधि अन्ना, को सादर बुलवाओ..
कहे 'सलिल' कविराय, ना नादिरशाही भाती.
आम आदमी खड़ा, वज्र कर अपनी छाती..
*
रामदेव से छल किया, चल शकुनी सी चाल.
अन्ना से मत कर कपट, आयेगा भूचाल..
आएगा भूचाल, पलट जायेगी सत्ता.
पल में कट जायेगा, रे मनमोहन पत्ता..
नहीं बचे सरकार नाम होगा बदनाम.
लोकपाल से क्यों डरता? कर कर इसे सलाम..
*
अनशन पर प्रतिबन्ध है, क्यों, बतला इसका राज?
जनगण-मन को कुचलना, नहीं सुहाता काज..
नहीं सुहाता काज, लाज थोड़ी तो कर ले.
क्या मुँह ले फहराय तिरंगा? सच को स्वर दे..
चोरों का सरदार बना ईमानदार मन.
तज कुर्सी आ तू भी कर ले अब तो अनशन..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
6 टिप्पणियां:
बहुत खूब संजीव जी ! उजाले से भरपूर कुण्डलियाँ
सादर,
दीप्ति
--- On Sun, 14/8/11
12:02pm Aug 14
GOOD BUT THIS COULD HAVE BEEN BETTER POSTED ON SOME OTHER RELEVANT SITE. THIS SITE IS EXCLUSIVE FOR RADIO AND RADIO RELATED POSTS.
आदरणीय सलिल जी
इन कुण्डलियों के माध्यम से आपने मेरे और करोड़ों लोगों की भावनायें प्रेषित कर दीं।
मैं बहुत खुश हुआ। बधाई स्वीकारें।
सन्तोष कुमार सिंह
--- On Sun, 14/8/11
अगर सांसद जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं तो कवि भी जन मानस का प्रतिनिधित्व करता है. फ़र्क इतना है कि वोट बैंक खरीदे जा सकते हैं, कवि बैंक नहीं. सलिल जी की कविता यूँ ही नहीं बन गई. इसका सृजन पीड़ा से हुआ है--जन जन की पीड़ा.
गोरी चमड़ी क्या जाने जनता की पीड़ा
लाठी भांजे रामदेव पर, समझे क्रीड़ा
मनमोहन को बना दिया है निश्चल कीड़ा
भारत छोड़ो इटली, उठा लिया है बीड़ा.
--ख़लिश
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- उद्धृत पाठ दिखाएं -
--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
आ० आचार्य जी,
अति सामयिक, सटीक और प्रभावपूर्ण कुण्डलियाँ
रची आपने जो आज के यथार्थ को उदभाषित करती हैं
साधुवाद,
कमल
2011/8/14
तीनों ही कुण्डलिया सामयिक व अद्वितीय हैं बधाई आचार्य जी !
8:55am Aug 15
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