दोहा सलिला:
राखी साखी स्नेह की
संजीव 'सलिल'
*
राखी साखी स्नेह की, पढ़ें-गुनें जो लोग.
बैर द्वेष नफरत 'सलिल', बनें न उनका रोग..
*
रेशम धागे में बसा, कोमलता का भाव.
स्वर्ण-राखियों में मिला, इसका सदा अभाव..
*
राखी रिश्ता प्रेम का, नहीं स्वार्थ-परमार्थ.
समरसता का भाव ही, श्रेष्ठ- करे सर्वार्थ,,
*
मन से मन का मेल है, तन का तनिक न खेल.
भैया को सैयां बना, मल में नहीं धकेल..
(ममेरे-फुफेरे भाई-बहिन के विवाह का समाचार पढ़कर)
*
भाई का मंगल मना, बहिना हुई सुपूज्य.
बहिना की रक्षा करे, भैया बन कुलपूज्य..
*
बंध न बंधन में 'सलिल', यदि हो रीत कुरीत.
गंध न निर्मल स्नेह की, गर हो व्याप्त प्रतीत..
*
बंधु-बांधवी जब मिलें, खिलें हृदय के फूल.
ज्यों नदिया की धार हो, साथ लिये निज कूल..
*
हरे अमंगल हर तुरत, तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे, बहिना आशिष-हाथ..
*
तिल-तिल कर संकट हरे, अक्षत-तिलक समर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..
*
भाई-बहिन रवि-धरा से, अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों, दूर भले हो गेह..
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राखी साखी स्नेह की
संजीव 'सलिल'
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राखी साखी स्नेह की, पढ़ें-गुनें जो लोग.
बैर द्वेष नफरत 'सलिल', बनें न उनका रोग..
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रेशम धागे में बसा, कोमलता का भाव.
स्वर्ण-राखियों में मिला, इसका सदा अभाव..
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राखी रिश्ता प्रेम का, नहीं स्वार्थ-परमार्थ.
समरसता का भाव ही, श्रेष्ठ- करे सर्वार्थ,,
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मन से मन का मेल है, तन का तनिक न खेल.
भैया को सैयां बना, मल में नहीं धकेल..
(ममेरे-फुफेरे भाई-बहिन के विवाह का समाचार पढ़कर)
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भाई का मंगल मना, बहिना हुई सुपूज्य.
बहिना की रक्षा करे, भैया बन कुलपूज्य..
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बंध न बंधन में 'सलिल', यदि हो रीत कुरीत.
गंध न निर्मल स्नेह की, गर हो व्याप्त प्रतीत..
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बंधु-बांधवी जब मिलें, खिलें हृदय के फूल.
ज्यों नदिया की धार हो, साथ लिये निज कूल..
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हरे अमंगल हर तुरत, तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे, बहिना आशिष-हाथ..
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तिल-तिल कर संकट हरे, अक्षत-तिलक समर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..
*
भाई-बहिन रवि-धरा से, अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों, दूर भले हो गेह..
*
7 टिप्पणियां:
हरे अमंगल हर तुरत, तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे, बहिना आशिष-हाथ..
आदरणीय आचार्य जी, इस मधुर रस को पान करने की इच्छा कल से ही थी, सभी दोहे एक से बढ़कर एक है, राखी, बहन भाई के परस्पर रिश्तों को अलग अलग कोणों से व्यक्त करना बहुत ही रोचक बन पड़ा है |
बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई आचार्य जी |
उदित हुये अब मंच पर, साधक गुरु-गंभीर
घोषित, केहरि नाद की अंतर आवृति धीर..
//राखी साखी स्नेह की, पढ़ें-गुनें जो लोग.
बैर द्वेष नफरत'सलिल',बनें न उनका रोग//
राखी साखी जो पढ़ी, हरषित मन है आज.
अम्बरीष का है नमन, बहुत खूब यह काज..
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/रेशम धागे में बसा, कोमलता का भाव.
स्वर्ण-राखियों में मिला,इसका सदा अभाव../
सच कहते आचार्य जी, कोमलता अनमोल.
है कठोर अति कष्ट दे, स्वर्ण बिकेगा तोल..
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//राखी रिश्ता प्रेम का, नहीं स्वार्थ-परमार्थ.
समरसता का भाव ही, श्रेष्ठ-करे सर्वार्थ,,//
प्रेम भाव सबसे बड़ा, बड़ा नेह परमार्थ.
बेगाना हमको करे हमें हमारा स्वार्थ..
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/मन से मनका मेल है,तनका तनिक न खेल.
भैया को सैयां बना, मल में नहीं धकेल../
बहना के संग हैं सदा, सबके पावन भाव.
जो बहके उन पर चढ़ा कलयुग काल प्रभाव..
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//भाई का मंगल मना, बहिना हुई सुपूज्य.
बहिना की रक्षा करे, भैया बन कुलपूज्य..//
बहुत भला दोहा रचा, छिपा गज़ब संदेश.
इसको मिल अपनाइए, तभी बढेगा देश..
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//बंध न बंधन में'सलिल,यदि हो रीत कुरीत.
गंध न निर्मल स्नेहकी, गर हो व्याप्तप्रतीत..//
सत्य वचन आचार्यजी, यह दोहा अनमोल.
स्नेह रहे निर्मल सदा,साथ प्रीति के बोल..
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/बंधु-बांधवी जब मिलें, खिलें हृदय के फूल.
ज्यों नदिया की धार हो,साथ लिये निज कूल.
एवमस्तु सब जन कहें, खिले रहें ये फूल.
हृदय-हृदय में स्नेह हो, स्नेह सृष्टि का मूल.
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/हरे अमंगल हर तुरत,तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे,बहिना आशिष-हाथ.
खूब कहा आचार्यजी, अति उत्तम है तात.
बहिना आज सरस्वती, झरें स्नेह के पात..
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/तिल-तिल कर संकट हरे,अक्षत-तिलकसमर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..//
माथ सजा अक्षत-तिलक, बहिना दे आशीष.
भाई छूता है चरण, उसे नवाता शीश..
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//भाई-बहिन रवि-धरा से,अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों,दूर भले हो गेह..//
धन्य धन्य आचार्य जी, धन्य बहन का नेह.
दोहे पढ़कर यह सभी, पहुँच गये निज गेह..
भाई-बहिन रवि-धरा से, अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों, दूर भले हो गेह..
bahut khubsurat sir ji
waah aachary ji,
लाये हैं निज साथ में, दोहे परम पुनीत|
करते हैं जो कामना, रहे परस्पर प्रीत||
aur aapke is dohe me yamak ka khubsurat prayog......
तिल-तिल कर संकट हरे, अक्षत-तिलक समर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..
mera naman.
आपकी दोहावली पढ़कर दिल को ठंडक पहुंची आचार्यवर ! साधु साधु !!
आदरणीय आचार्य जी.
बहुत ही सुन्दर दोहों की प्रस्तुति.
मंत्रमुग्ध सा पढता ही चला गया.
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
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