मुक्तिका:
चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें
संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' साँस को आस-सोहबत बना दें.
जो दिखलाये दर्पण हकीकत बना दें..
जिंदगी दोस्ती को सिखावत बना दें..
मदद गैर की अब इबादत बना दें.
दिलों तक जो जाए वो चिट्ठी लिखाकर.
कभी हो न हासिल, अदावत बना दें..
जुल्मो-सितम हँस के करते रहो तुम.
सनम क्यों न इनको इनायत बना दें?
रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.
भले खार मुश्किल बगावत बना दें..
जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें..
'सलिल' जिंदगी को मुहब्बत बना दें.
श्रम की सफलता से निस्बत करा दें...
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot. com
चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें
संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' साँस को आस-सोहबत बना दें.
जो दिखलाये दर्पण हकीकत बना दें..
जिंदगी दोस्ती को सिखावत बना दें..
मदद गैर की अब इबादत बना दें.
दिलों तक जो जाए वो चिट्ठी लिखाकर.
कभी हो न हासिल, अदावत बना दें..
जुल्मो-सितम हँस के करते रहो तुम.
सनम क्यों न इनको इनायत बना दें?
रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.
भले खार मुश्किल बगावत बना दें..
जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें..
'सलिल' जिंदगी को मुहब्बत बना दें.
श्रम की सफलता से निस्बत करा दें...
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.
7 टिप्पणियां:
आ० आचार्य जी ,
प्रेरणादायक रचना के लिये साधुवाद |
विशेष-
रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.
भले खार मुश्किल बगावत बना दें..
सादर
कमल
जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें..
काश कोई कर पाए ऐसा
वो हो जाए मुकुट जैसा
अभी तो तन पर है चिथड़ा
पास में ना फूटा पैसा |
किन्तु यह है एक उत्तम सोंच
न मन में हो कोई संकोच
सभी हो जाएँ मृदुल स्वभाव
हमेशा दिल में रहे ये चाव ||
आप के लेखनी को सदा है नमन
जो सोंचे सभी के लिए एक सदन
रहे ना कोई भी अभावों में अब
कोई ना करे अब चमन में रुदन ||
Achal Verma
--- On Mon, 8/1/11
✆ mukku41@yahoo.com ekavita २ अगस्त
सलिल जी,
सच अच्छी मुक्तिका
मुकेश इलाहाबादी
आदरणीय आचार्य जी ,
बहुत ही प्यारी मुक्तिका है ख़ास कर ये दो पंक्ति ...
जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें..
सादर संतोष भाऊवाला
2011/8/1
सलिल जी,
सुन्दर मुक्तिका हेतु बधाई.
परन्तु 'आस-सोहबत' का मतलब साफ़ नहीं है. खटकता भी है.
महेश चन्द्र द्विवेदी
१ अगस्त २०११ ११:२४
जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें..
आमीन
Arun Kumar Pandey 'Abhinav'
"जो खेतों में करती हैं मेहनत हमेशा.
उन्हें ताजमहलों की जीनत बना दें.."
बहुत सुन्दर रचना विविध भावों से युक्त और सौरभ जी ने ठीक कहा आपको पढना मस्तिष्क को खुराक मिलने के सामान है |
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