लघुकथा:
थोड़ा सा चन्द्रमा
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अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रवेश, पति को हृद्रोग दोनों सूचनाएँ साथ-साथ पाकर उनका जी धक से रह गया... अपना बक्सा खोला उसमें रखे पैसे गिने, बैंक की पास बुक देखी, दवाई-इलाज का काम तो खींच-तान कर चला लेंगी पर अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रवेश कैसे?, प्रवेश न कराये तो बच्चे का भविष्य अंधकारमय, पति के लिये तनाव भी घातक, क्या करें?…
''आइये, आइये' दरवाज़े पर उन्हें ठिठका देख मैंने पूछा 'कहिये, डॉक्टर क्या कह रहे हैं?' और सोफे पर बैठने का संकेत किया।
खुद को संयत करते हुए उन्होंने उक्त परिस्थति की चर्चाकर मागदर्शन चाहा। एक क्षण को मैं हतप्रभ हुआ,क्या कहूँ? परिस्थिति वाकई जटिल थी। कुछ सोचकर कहा: 'फ़िक्र न करें,हम सब मिलकर स्थिति को सुलझा लेंगे। बच्चे को कितनी फीस कब भरनी है बता दें, मैं बैंक से लाकर भिजवा दूँगा, आप इलाज पर ध्यान दें।'
'आपसे यही उम्मीद थी, पर ५ साल पढ़ाई का खर्च कैसे? अभी २ माह ये नौकरी पर भी नहीं जा सकेंगे, तनखा भी बाद में ही मिलेगी' -वे बोलीं, चाहती तो नहीं थी पर मजबूरी में आपसे …
इस बीच मैं अपना मन स्थिर कर चुका था कहा: 'आपने तुरंत बताकर बिलकुल ठीक किया। एक ही रास्ता है लेकिन आपको बहुत मेहनत'
'मैं कुछ भी कर लूँगी' मेरे वाक्य पूरा करने के पहले ही बोल पड़ीं वे और फिर अपनी हड़बड़ी पर झेंप भी गयीं।
'मुझे कार्यालय के मित्रों को पार्टी देना है, ये कॉलेज में ही इतना थक जाती हैं कि चाह कर भी बना नहीं पाएंगी औए बाजार का बना मैं खिलाना नहीं चाहता, सामान भेज दूँ तो बना देंगी मेरे लिये?' मैंने उन्हें मिठाई-नमकीन की सूची दे दी। उन्हें अटपटा तो लगा किन्तु चुप रहीं। श्रीमती जी के घर लौटने पर मैंने पूरी बात और अपनी योजना बताई और उनसे पूछकर किरानेवाले को फोन कर सामान भिजवा दिया।
अगले ही दिन उन्होंने कहे अनुसार सामान बनाकर भेज दिया था। हमने अपने कार्यालयों में साथियों को वह मीठा-नमकीन खिलाकर त्यौहार पर इन्हीं से खरीदने का आग्रह किया। बाजार भाव से १०% कम दर बताई तो उनका सब सामान बिक गया था। किरानेवाले का बिल चुकाकर अच्छी रकम बच गयी। श्रीमती जी ने बची राशि व नये आदेश उन्हें देते हुए बताया कि किरानेवाला सामान भी भेज रहा है, आप सुविधा से बना देना तो हम दोनों ग्राहकों तक पहुँचा देंगे। वे अवाक सी सुनती रहीं मानों विश्वास न कर पा रही हों, चेहरे पर एक रंग आ रहा था तो एक जा रहा था, अंत में ख़ुशी ने स्थाई डेरा जमा लिया तो हमने चैन की सांस ली।
'अरे! ऐसे क्या देख रही हैं? आपने तो तीर मार दिया, बेटा जाने कब कमायेगा पर आपने तो कमाना शुरू भी कर दिया। अब बेटे की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आएगी लेकिन पहले रुपये गिन लीजिये, आपकी सहेली ने कम तो नहीं कर दिए और पहली कमाई पर खीर तो खिलानी ही पड़ेगी।'
मेरी आवाज सुनकर उन्होंने आश्चर्य और कृतज्ञता के भाव से मुझे देखा और श्रीमती जी से बोलीं: 'डाइबिटीजवालों को तो खीर मिलेगी नहीं।'
'अच्छा! मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊं?' श्रीमती जी बोलीं, तब मुझे ध्यान आया कि उनके श्रीमान और मेरी श्रीमती जी मधुमेहग्रस्त हैं। वे तो चली गयीं पर खिड़की से झाँक रहा था थोड़ा सा चन्द्रमा।
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