कृति चर्चा:
समीक्षा के बढ़ते चरण : गुरु साहित्य का वरण
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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[कृति विवरण: समीक्षा के बढ़ते चरण, समालोचनात्मक संग्रह, डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र, वर्ष २०१५, पृष्ठ ११२, मूल्य २००/-, आकार डिमाई, आवरण पेपरबैक, दोरंगी, प्रकाशक शिव संकल्प साहित्य परिषद, नर्मदापुरम, होशंगाबाद ४६१००१, चलभाष ९४२५१८९०४२, लेखक संपर्क: ए / २० बी कुंदन नगर, अवधपुरी, भोपाल चलभाष ९८९३१८९६४६]
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समीक्षा के बढ़ते चरण नर्मदांचल के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार गिरिमोहन गुरु रचित हिंदी ग़ज़लों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेखों का संग्रह है जिसका संपादन हिंदी प्राध्यापक व रचनाकार डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र ने किया है. डॉ. मिश्र के अतिरिक्त डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, डॉ. लक्ष्मीकांत पाण्डेय, डॉ. रोहिताश्व अष्ठाना, डॉ. आर. पी. शर्मा 'महर्षि', डॉ. श्यामबिहारी श्रीवास्तव, श्री अरविन्द अवस्थी, डॉ. रामवल्लभ आचार्य, डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ, श्री युगेश शर्मा,श्री लक्ष्मण कपिल, श्री फैज़ रतलामी, श्री रमेश मनोहरा, श्री नर्मदा प्रसाद मालवीय, श्री नन्द कुमार मनोचा, डॉ. साधना संकल्प, श्री भास्कर सिंह माणिक, श्री भगवत दुबे, डॉ. विजय महादेव गाड़े, श्री बाबूलाल खण्डेलवाल, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. भगवानदास जैन, श्री अशोक गीते, श्री मदनमोहन उपेन्द्र, प्रो. उदयभानु हंस, डॉ. हर्ष नारायण नीरव, श्री कैलाश आदमी द्वारा गुरु वांग्मय की विविध कृतियों पर लिखित आलेखों का यह संग्रह शोध छात्रों के लिए गागर में सागर की तरह संग्रहणीय और उपयोगी है. उक्त के अतिरिक्त डॉ. कृष्णपाल सिंह गौतम, डॉ. महेंद्र अग्रवाल, डॉ. गिरजाशंकर शर्मा, श्री बलराम शर्मा, श्री प्रकाश राजपुरी लिखित परिचयात्मक समीक्षात्मक लेख, परिचयात्मक काव्यांजलियाँ, साहित्यकारों के पत्रों आदि ने इस कृति की उपयोगिता वृद्धि की है. ये सभी रचनाकार वर्तमान हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं.
गुरु जी बहुविधायी सृजनात्मक क्षमता के धनी-धुनी साहित्यकार हैं. वे ग़ज़ल, दोहे, गीत, नवगीत, समीक्षा, चालीसा आदि क्षेत्रों में गत ५ दशकों से लगातार लिखते-छपते रहे हैं. कामराज विश्व विद्यालय मदुरै में 'गिरिमोहन गुरु और उनका काव्य' तथा बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में 'पं. गिरिमोहन गुरु के काव्य का समीक्षात्मक अध्ययन दो लघु शोध संपन्न हो चुके हैं. ८ अन्य शोध प्रबंधों में गुरु-साहित्य का संदर्भ दिया गया है. गुरु साहित्य पर केंद्रित १० अन्य संदर्भ इस कृति में वर्णित हैं. कृति के आरंभ में नवगीतकार, ग़ज़लकार, मुक्तककार, दोहाकार, क्षणिककर, भक्तिकाव्यकार के रूप में गुरु जी के मूल्यांकन करते उद्धरण संगृहीत किये गए है.
गुरु जी जैसे वरिष्ठ साहित्य शिल्पी के कार्य पर ३ पीढ़ियों की कलमें एक साथ चलें तो साहित्य मंथन से नि:सृत नवनीत सत्य-शिव-सुंदर के तरह हर जिज्ञासु के लिए ग्रहणीय होगा ही. विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के ग्रंथालयों में ऐसी कृतियाँ होना ही चाहिए ताकि नव पीढ़ी उनके अवदान से परिचित होकर उन पर कार्य कर सके.
गिरि मोहन गुरु गिरि शिखर सम शोभित है आज
अगणित मन साम्राज्य है, श्वेत केश हैं ताज
दोहा लिख मोहा कभी, करी गीत रच प्रीत
ग़ज़ल फसल नित नवल ज्यों, नीत नयी नवगीत
भक्ति काव्य रचकर छुआ, एक नया आयाम
सम्मानित सम्मान है, हाथ आपका थाम
संजीवित कर साधना, मन्वन्तर तक नाम
चर्चित हो ऐसा किया, तुहिन बिन्दुवत काम
'सलिल' कहे अभिषेक कर, हों शतायु तल्लीन
सृजन कर्म अविकल करें, मौलिक मधुर नवीन
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Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
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