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बुधवार, 25 नवंबर 2015

navgeet mahotsav 2015

आँखों देखा - 
द्विदिवसीय नवगीत महोत्सव लखनऊ २१-२२ नवंबर २०१५ 

'ऐ शहरे-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है' कहते हुए मैं चित्रकूट एक्सप्रेस से रामकिशोर दाहिया, सुवर्णा दीक्षित तथा रोहित रूसिया के साथ २- नवंबर २०१५ को सवेरे १० बजे चारबाग स्टेशन पर उतरा। 

फैजाबाद मार्ग पर गोमती नगर में पॉलीटेक्निक के समीप कालिंदी विहार के १० वें तल पर अभिव्यक्ति विश्वं का प्रतिष्ठा पर्व 'नवगीत महोत्सव' श्री प्रवीण सक्सेना तथा श्रीमती पूर्णिमा बर्मन के संरक्षकत्व में संपन्न होने की तैयारियाँ अंतिम चरण में मिलीं. गत वर्ष पूर्णिमा जी के माता-पिता दोनों का आशीष पाया था, इस वर्ष सिर्फ पिताश्री का आशीष मिल सका, माता जी इहलोक से बिदा हो चुकी हैं. प्रवीण जी तथा पूर्णिमा जी दोनों तन से बीमार किन्तु मन से पूरी तरह स्वस्थ और तन मन धन समय और ऊर्जा सहित समर्पित हैं इस सारस्वत अनुष्ठान हेतु। नवगीतों के पोस्टरों से दीवारें सुसज्जित हैं. सुवर्णा और रोहित आते ही जुट गये सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की तैयारी में। कल्पना रामानी जी अपनी रुग्णता के बावजूद पूर्णिमा जी का हाथ बन गयी हैं। शशि पुरवार जी के आते ही पूर्णिमा जी के हाथों का बल बढ़ गया है। 
२१ नवंबर: 

प्रातः ९ बजे- दीप प्रज्वलन सर्व श्री / श्रीमती राधेश्याम बन्धु दिल्ली, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा यायावर फिरोजाबाद, डॉ. उषा उपाध्याय अहमदाबाद, पूर्णिमा जी, डॉ. जगदीश व्योम नोएडा, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, डॉ. मालिनी गौतम महीसागर ने गीतिका वेदिका के कोकिल कंठी स्वर में गुञ्जित हो रही सरस्वती वंदना के मध्य किया। 
प्रथम सत्र में पूर्णिमा बर्मन जी की माता श्री तथा श्रीकांत मिश्र जी के अवदान को समारं करते हुए उन्हें मौन श्रृद्धांजलि दी गयी। नवोदित नवगीतकारों द्वारा नवगीतों की प्रस्तुति पश्चात् उन पर वरिष्ठ नवगीतकारों मार्गदर्शन के अंतर्गत गीतिका वेदिका दिल्ली को रामकिशोर दाहिया कटनी, शुभम श्रीवास्तव 'ॐ' मिर्ज़ापुर को आचार्य संजीव वर्मा ;सलिल' जबलपुर, रावेन्द्र 'रवि' खटीमा को राधेश्याम बंधु दिल्ली, रंजना गुप्ता लखनऊ को डॉ. रणजीत पटेल मुजफ्फरपुर,
आभा खरे लखनऊ को गणेश गंभीर मिर्ज़ापुर भावना तिवारी लखनऊ को मधुकर अष्ठाना लखनऊ तथा शीला पाण्डे लखनऊ को बंधु जी द्वारा परामर्श दिया गया। सत्रांत के पूर्व डॉ. यायावर ने नवगीत तथा गीत के मध्य की विभाजक रेखा को विरल बताते हुए कहा की किसी मेनिफेस्टो के अनुसार नवगीत नहीं लिखा जा सकता। नवगीत को गीत का विरोधी नहीं पूरक बताते हुए वक्ता ने नवगीत के समय सापेक्षी न होने, शहरी होने, नवगीत पर पर्याप्त शोध - समीक्षा न होने की धारणाओं से असहमति व्यक्त की।
द्वितीय सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों सर्व श्री / श्रीमती मालिनी गौतम, गणेश गंभीर, रामकिशोर दाहिया, रणजीत पटेल, देवेन्द्र शुक्ल 'सफल', विनोद निगम, डॉ. यायावर, राधेश्याम बन्धु, मधुकर अष्ठाना आदि ने नवगीत पाठ किया।  

तृतीय सत्र में सर्वश्री रोहित रसिया, सुवर्णा दीक्षित आदि ने मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।

२२ नवंबर:

प्रातः १० बजे अकादमिक शोधपत्र वाचन के अंतर्गत कुमार रविन्द्र की कृति 'पंख बिखरे रेत पर' पर  कल्पना रामानी, निर्मल शुक्ल की कृति 'एक और अरण्य काल' पर शशि पुरवार तथा 'गुजराती गीतों की प्रवृत्तियाँ' पर डॉ. उषा उपाध्याय के वक्तव्य सराहे गए।  

अपरान्ह पंचम सत्र में नवगीत संकलन विमोचन तथा समीक्षा के अंतर्गत अंजुरी भर प्रीति - रजनी मोरवाल पर कुमार रविन्द्र, अल्लाखोह मची - रामकिशोर दाहिया पर आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सदी को सुन रहा हूँ मैं - जयकृष्ण 'तुषार' पर शशि पुरवार, चार दिन फागुन के - रामशंकर वर्मा पर मधुकर अष्ठाना, समय की आँख - विनय मिश्र पर डॉ. मालिनी गौतम झील अनबुझी प्यास की - डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' पर निर्मल शुक्ल, गौरैया का घर खोया है - अश्वघोष पर डॉ. जगदीश व्योम द्वारा लिखित समीक्षाओं का वाचन किया गया।
अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा नवगीत के सृजन, समीक्षा, नव मंगीतकारों के मार्गदर्शन आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्म भूमिका का निर्वाण करनेवाले व्यक्तित्वों को नवांकुर पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है जिसमें प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह तथा ग्यारह हजार रुपये की नगद धनराशि होती है। 
कल्पना रामानी, रोहित रूसिया तथा ओमप्रकाश तिवारी के पश्चात २०१५ का अभिव्यक्ति पुष्पम पुरस्कार २०१५ सृजन, समीक्षा, मार्गदर्शन के क्षेत्रों में निरंतर सक्रिय रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन हेतु आचार्य संजीव वर्मा सलिल को भेंट किया गया। 
षष्ठम सत्र में 'बातचीत' के अंतर्गत डॉ. भारतेंदु मिश्र, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', डॉ. जगदीश व्योम, विनोद निगम, मधुकर अष्ठाना, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', गणेश गंभीर, डॉ. रणजीत पटेल आदि ने नवगीत के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। प्रश्नोत्तर के साथ इस सारगर्भित सत्र का समापन हुआ। 

अंतिम सत्र में आगंतुकों तथा स्थानीय साहित्यकारों द्वारा काव्यपाठ के साथ इस देर रात इस महत्वपूर्ण  सारस्वत अनुष्ठान का समापन हुआ।
हिंदी नवगीत पर केन्द्रित इस आयोजन का वैशिष्ट्य नवगीत तथा अन्य विधाओं के मध्य रचना सेतु निर्माण है. नवगीत, संगीत, नृत्य, चित्रकला, छायांकन, फिल्मांकन तथा समीक्षा के सात रंगों से निर्मित इन्द्रधनुषों की सुषमा मन-प्राण आल्हादित कर देती है और यह आयोजन सरोजन के उच्चतम स्तर को स्पर्श कर पाता है। आगामी आयोजनों में लिप्यंतरण और अनुवाद के आयाम जोडकर इसे और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। बिना किसी अन्य सहायता के स्वसंचित साधनों से इस स्तर और पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन कर पाना वाकई बहुत कठिन होता है. पूर्णिमा जी तथा प्रवीण जी न ही नहीं उनका पूरा परिवार जिस समर्पण भाव से अपने साधन ही नहीं अपने आपको भी झोंककर इसे समपान करते हैं। वे वस्तुत: साधुवाद के पात्र हैं।

***
नवोदित नवगीतकार श्री शिवम् श्रीवास्तव 'ॐ' के नवगीतों पर टिप्पणी, चर्चित नवगीतकार श्री रामकिशोर दाहिया के नवगीत संग्रह 'अल्लाखोह मची' पर समीक्षा, नवगीत के बदलते मानकों पर सारगर्भित चर्चा में सहभागिता, १८ पठनीय पुस्तकों की प्राप्ति तथा अभिव्यक्ति विश्वं के निर्माणाधीन भवन के अवलोकन गत वर्ष की तरह अभियंता के रूप में बेहतर निर्माण व उपयोग के सुझाव दे पाने लिये यह सारस्वत अनुष्ठान चिस्मरणीय है। लगभग ५० वर्षों बाद श्री विनोद निगम जी का आशीष पाया। श्री सुरेश उपाध्याय तथा विनोद जी की कवितायेँ शालेय जीवन में पढ़-सुन कर ही काव्य के प्रति रूचि जगी। दोनों विभूतियों को नमन।

नवगीत महोत्सव लखनऊ के पूर्ण होने पर 
एक रचना: 
                         फिर-फिर होगा गीत पर्व यह 
                         *
                         दूर डाल पर बैठे पंछी 
                         नीड़ छोड़ मिलने आये हैं 
                         कलरव, चें-चें, टें-टें, कुहू 
                         गीत नये फिर गुंजाये हैं 
                         कुछ परंपरा,कुछ नवीनता 
                         कुछ अनगढ़पन,कुछ प्रवीणता 
                         कुछ मीठा,कुछ खट्टा-तीता
                         शीत-गरम, अब-भावी-बीता 
                         ॐ-व्योम का योग सनातन
                         खूब सुहाना मीत पर्व यह 
                         फिर-फिर होगा गीत पर्व यह 
                         *
                                    सुख-दुःख, राग-द्वेष बिसराकर
                                    नव आशा-दाने बिखराकर 
                                    बोयें-काटें नेह-फसल मिल 
                                    ह्रदय-कमल भी जाएँ कुछ खिल 
                                    आखर-सबद, अंतरा-मुखड़ा 
                                    सुख थोड़ा सा, थोड़ा दुखड़ा 
                                    अपनी-अपनी राम कहानी 
                                    समय-परिस्थिति में अनुमानी 
                                    कलम-सिपाही ह्रदय बसायें 
                                    चिर समृद्ध हो रीत, पर्व यह 
                                    फिर-फिर होगा गीत पर्व यह 
                                    *
                                                 मैं-तुम आकर हम बन पायें 
                                                 मतभेदों को विहँस पचायें 
                                                 कथ्य शिल्प रस भाव शैलियाँ 
                                                 चिंतन-मणि से भरी थैलियाँ 
                                                 नव कोंपल, नव पल्लव सरसे 
                                                 नव-रस मेघा गरजे-बरसे 
                                                 आत्म-प्रशंसा-मोह छोड़कर 
                                                 परनिंदा को पीठ दिखाकर 
                                                 नये-नये आयाम छू रहे 
                                                 मना रहे हैं प्रीत-पर्व यह 
                                                 फिर-फिर होगा गीत पर्व यह 
                                                 ********

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