एक रचना:
*
मानवासुर!
है चुनौती 
हमें भी मारो। 
* 
हम नहीं हैं एक 
लेकिन एक हैं हम।
जूझने को मौत से भी 
हम रखें दम।
फोड़ते हो तुम 
मगर हम बोलते हैं 
गगन जाए थरथरा 
सुन बोल 'बम-बम'।
मारते तुम निहत्थों को 
क्रूर-कायर!
तुम्हारा पुरखा रहा 
दनु अंधकासुर।
हम शहादत दे 
मनाते हैं दिवाली।
जगमगा देते 
दिया बन रात काली।
जानते हैं देह मरती 
आत्मा मरती नहीं है।
शक्ल है 
कितनी घिनौनी, जरा 
दर्पण तो निहारो 
मानवासुर!
है चुनौती 
हमें भी मारो। 
* 
मनोबल कमजोर इतना  
डर रहे परछाईं से भी।
रौंदते कोमल कली  
भूलो न सच तुम।
बो रहे जो  
वही काटोगे हमेशा  
तडपते पल-पल रहोगे   
दर्द होगा पर नहीं कम।
नाम मत लो धर्म का  
तुम हो अधर्मी!
नहीं तुमसे अधिक है  
कोई कुकर्मी।
जब मरोगे 
हँसेगी इंसानियत तब।
शूल से भी फूल 
ऊगेंगे नए अब ।
निरा अपना, नया सपना  
नित नया आकार लेगा।
किन्तु बेटा भी तुम्हारा 
तुम्हें श्रृद्धांजलि न देगा 
जा उसे मारो। 
मानवासुर!
है चुनौती 
हमें भी मारो। 
*
 
 
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