तितलियाँ
संजीव 'सलिल'
*
तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.
फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..
*
तितलियों को देख भँवरे ने कहा.
भटकतीं दर-दर, न क्यों एक घर रहीं?
कहा तितली ने मिले सब दिल जले.
कौन है ऐसा जिसे पा दिल खिले?.
*
पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.
गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..
*
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो पड़ीं..
*
तितलियाँ ही बाग़ की रौनक बनी.
भ्रमर तो बेदाम के गुलाम हैं..
*
'आदाब' भँवरे ने कहा, तितली हँसी.
'आ दाब' बोली और फुर से उड़ गयी..
*
तितलियों के फेर में घर टूटते देखे.
कहाँ कितने और कब यह काल ही लेखे..
*
गिराई जब तितलियों ने बिजलियाँ.
दिला जला, भँवरा 'सलिल' काला हुआ..
*
तितलियों ने शूल से बचते हुए.
फूल को चाहा हमेशा मौन रह..
*
तितली ने रस चूसकर, दिया पुष्प को छोड़.
'सलिल' पलट देखा नहीं, आये-गए कब मोड़?.
*
तितली रस-गाहक 'सलिल', भ्रमर रूप का दास.
जग चाहे तितली मिले, भ्रमर न आये पास..
*
ब्यूटीपार्लर जा सजें, 'सलिल' तितलियाँ रोज.
फिर भँवरों को दोष दें, क्यों? इस पर हो खोज..
*
तितली से तितली मिले, भुज भर हो निर्द्वंद.
नहीं भ्रमर, फिर क्यों मनुज, नित करता है द्वन्द??
*
तितली से बगिया
हुई, प्राणवान-जीवंत.
जग-बगिया में साथ ही, रहें फूल औ' शूल.
नेह नर्मदा संग ही, जैसे रहते कूल..
'सलिल' न भँवरा बन, न दे मतभेदों को तूल.
हर दिल बस, हर दिल बसा दिल में, झगड़े भूल..
*
नहीं लड़तीं, नहीं जलतीं, हमेशा मेल से रहतीं.
तितलियों को न देखा आदमी की छाँह भी गहतीं..
हँसों-खेलो, न झगड़ो ज़िंदगी यह चंद पल की है-
करो रस पान हो गुण गान, भँवरे-तितलियाँ कहतीं..
*
तितलियाँ ही न हों तो फूल का रस कौन पायेगा?
भ्रमर किस पर लुटा दिल, नित्य किसके गीत गायेगा?
न कलियाँ खिल सकेंगीं, गर न होंगे चाहनेवाले-
'सलिल' तितली न होगी, बाग़ में फिर कौन जायेगा?.
******************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot. com
संजीव 'सलिल'
*
तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.
फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..
*
तितलियों को देख भँवरे ने कहा.
भटकतीं दर-दर, न क्यों एक घर रहीं?
कहा तितली ने मिले सब दिल जले.
कौन है ऐसा जिसे पा दिल खिले?.
*
पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.
गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..
*
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो पड़ीं..
*
तितलियाँ ही बाग़ की रौनक बनी.
भ्रमर तो बेदाम के गुलाम हैं..
*
'आदाब' भँवरे ने कहा, तितली हँसी.
'आ दाब' बोली और फुर से उड़ गयी..
*
तितलियों के फेर में घर टूटते देखे.
कहाँ कितने और कब यह काल ही लेखे..
*
गिराई जब तितलियों ने बिजलियाँ.
दिला जला, भँवरा 'सलिल' काला हुआ..
*
तितलियों ने शूल से बचते हुए.
फूल को चाहा हमेशा मौन रह..
*
तितली ने रस चूसकर, दिया पुष्प को छोड़.
'सलिल' पलट देखा नहीं, आये-गए कब मोड़?.
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तितली रस-गाहक 'सलिल', भ्रमर रूप का दास.
जग चाहे तितली मिले, भ्रमर न आये पास..
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ब्यूटीपार्लर जा सजें, 'सलिल' तितलियाँ रोज.
फिर भँवरों को दोष दें, क्यों? इस पर हो खोज..
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तितली से तितली मिले, भुज भर हो निर्द्वंद.
नहीं भ्रमर, फिर क्यों मनुज, नित करता है द्वन्द??
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तितली यह सच जानती, नहीं मोह में तंत..
भ्रमर लोभ कर रो रहा, धोखा पाया कंत.
फूल कहे, सच को समझ, अब तो बन जा संत..
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भ्रमर लोभ कर रो रहा, धोखा पाया कंत.
फूल कहे, सच को समझ, अब तो बन जा संत..
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जग-बगिया में साथ ही, रहें फूल औ' शूल.
नेह नर्मदा संग ही, जैसे रहते कूल..
'सलिल' न भँवरा बन, न दे मतभेदों को तूल.
हर दिल बस, हर दिल बसा दिल में, झगड़े भूल..
*
नहीं लड़तीं, नहीं जलतीं, हमेशा मेल से रहतीं.
तितलियों को न देखा आदमी की छाँह भी गहतीं..
हँसों-खेलो, न झगड़ो ज़िंदगी यह चंद पल की है-
करो रस पान हो गुण गान, भँवरे-तितलियाँ कहतीं..
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तितलियाँ ही न हों तो फूल का रस कौन पायेगा?
भ्रमर किस पर लुटा दिल, नित्य किसके गीत गायेगा?
न कलियाँ खिल सकेंगीं, गर न होंगे चाहनेवाले-
'सलिल' तितली न होगी, बाग़ में फिर कौन जायेगा?.
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http://divyanarmada.blogspot.
8 टिप्पणियां:
achal verma ✆
इस भाव भरे सुन्दर गीत को पढ़ कर
लगा सलिल की तेज धारा कहीं डुबो मत दे
इसलिए मन ने कहा :
तितली भवरे पुष्प में लगी हुई है होड़
खेल बराबर चल रहा निरख मीत सब छोड़।
भूल गया इस खेल में जो तू खोकर नैन फिर तू पा सकता नहीं इस जीवन में चैन।।
सब में बसता राम है राम बिना नहीं कोय
जो तू चाहे राम को मन में दर्द न होय ।।
अचल वर्मा
Mukesh Srivastava ✆
आचार्य जी,
तितलियों को बहुत खूबी से ढला अश'आर में
हम आपकी इस अदा के भी कायल हो गए
बहूत खूब - बधाई
मुकेश इलाहाबादी
vijay2 ✆ vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० सलिल जी,
बहुत सुन्दर ।
बधाई ।
विजय
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा returns.groups.yahoo.com ekavita
आ० आचार्य जी,
अति सुंदर तथ्यपरक शिक्षाप्रद मुक्तिकायें ।
चित्रों ने प्राणवंत कर दिया इन्हें । विशेष -
तितलियों के फेर में घर टूटते देखे.
कहाँ कितने और कब यह काल ही लेखे..
कमल
आदरणीय सलिल जी,
आपने तितलियों पर खूब लिखा है और बहुत खूब लिखा है। अब आगे कभी तितली पर कुछ लिखना हो तो ये देखना पड़ेगा कि सलिल जी ने कुछ छोड़ा है या नहीं। बधाई स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
बागवां के गले लगकर तितलियाँ.
बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो पड़ीं.. ---- अति सुन्दर!
आपको यूँ जब चाहें ईकविता पे पढ़ पाते हैं ये हमारा सौभाग्य है आचार्य जी!
सादर शार्दुला
kusum sinha ✆
priy salil ji
bahut sundar kavita aapke kavya pratibha ke aage bade bade kavi mat hain badhai
kusum
Mahipal Singh Tomar ✆ mstsagar@gmail.com द्वारा returns.groups.yahoo.com ekavita
कल्पना के साथ बस दिक्कत यही ,
कब कहाँ ले जाय ये पक्का नहीं !
मन है ,मन की क्या बातें करें ?
कब कहाँ उड़ जाये ये पक्का नहीं !
आपके तितलियों के वर्णन ने इतने रंग बदले , कि,तितलियाँ भी हो गई हेरान, कि वो अब क्या करें ?
'सलिल'जी तितलियों की बहुरंगी छटा ,बिखेरने के लिए बधाई |
महिपाल ,२६/२/१२ ,ग्वालियर
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