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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

रचना - प्रति रचना: भजन: कौन कहता है?... मृदुल कीर्ति-संजीव 'सलिल'

रचना - प्रति रचना:
भजन:
कौन कहता है?...
मृदुल कीर्ति


कौन कहता है कि पीड़ा, पीर देती है?
ऊर्जा इसकी मिला रघुवीर देती है...
*
जग उठा था दास काली, शब्द के ही दंश से,
जग उठा था, दास तुलसी,  कटु वचन के अंश से.
जग उठा संकल्प ध्रुव का, जा मिला सर्वांश से.
चुभन इसकी ज्ञान भी गंभीर देती है.
ऊर्जा इसकी मिला रघुवीर देती है...
*
चेतना सोती नहीं,  यदि  पीर का हो जागरण,
चेतना खोती नहीं,  यदि  पीर का  हो  संवरण.
चेतना बोती वहीं, पर दिव्यता का   अंकुरण .
तपन इसकी दीप्ति , तम को चीर देती है.
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
***
भजन:
कौन कहता है?...
संजीव 'सलिल'
*
पीर को धर धीर सहता जो वही मंजिल वरे.
पीर सहकर पीर बनते, हैं सुहृद जन बाँकुरे.
पीर का आभार खोटे भी हुए सिक्के खरे.
पीर प्रभु की कृपा बन प्राचीर देती है

ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर तन का रोग हर, मन को विमल करती रही.
पीर बन नयनों का आँसू, सांत्वना धरती रही. 
पीर खुशियाँ लुटाने को, दर्द-दुःख वरती रही.
पीर पल में तोड़ हर हर ज़ंजीर देती है..
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर अपनों की परख कर मौन रहती है.
पीर सपनों को सुरख कर कुछ न कहती है.
पीर नपनों को निरख कर अथक बहती है.
पीर लेकर पीर कर बेपीर देती है...
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
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