दोहा मुक्तिका ...
आस प्रिया है श्वास की
संजीव 'सलिल
*
आस प्रिया है श्वास की, जीवन है मधु मास.
com
http://hindihindi.in
त्रास-हास सम भाव से, सहिये बनिए ख़ास..
रास न थामें और की, और न थामे रास.
करें नियंत्रण स्वयं पर, तभी रचाएं रास..
कोई न ग्रस्त काल को, सभी काल के ग्रास.
बन कर सूरज चमक ले, बौना हो खग्रास..
जब मुश्किल का समय हो कोई न डाले घास.
तिमिर घेर ले तो नहीं, आती छाया पास..
हो संकल्प सुदृढ़ अगर, चले मरुत उनचास.
डिगा नहीं सकता तनिक, होता सफल प्रयास..
तम पग-तल धरकर दिया, देता 'सलिल' उजास.
मौन भाव से मौत वर, होता नहीं उदास..
कौन जिसे होता नहीं, कभी सत्य-आभास.
सच वर ले यदि 'सलिल' हो, जीवन सुमन-सुवास..
***************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.http://hindihindi.in
2 टिप्पणियां:
दोहा मुक्तिका ...
आस प्रिया है श्वास की, जीवन है मधु मास.
त्रास-हास सम भाव से, सहिये बनिए ख़ास..---सुन्दर!
रास न थामें और की, और न थामे रास.
करें नियंत्रण स्वयं पर, तभी रचाएं रास.. ----- सुन्दर!
dks poet ✆ ekavita
आदरणीय सलिल जी,
इस सुंदर दोहा मुक्तिका के लिए साधुवाद स्वीकार करें
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
एक टिप्पणी भेजें