होली के रंग : नवीन चतुर्वेदी के संग |
* नायक:- |
गोरे गोरे गालन पे मलिहों गुलाल लाल,
कोरन में सजनी अबीर भर डारिहों|
सारी रँग दैहों सारी, मार पिचकारी, प्यारी,
अंग-अंग रँग जाय, ऐसें पिचकारिहों|
अँगिया, चुनर, नीबी, सुपरि भिगोय डारों,
जो तू रूठ जैहै, हौलें-हौलें पुचकारिहों|
अब कें फगुनवा में कहें दैहों छाती ठोक,
राज़ी सों नहीं तौ जोरदारी कर डारिहों||
[कवित्त]
[कवित्त]
नायिका:-
दुहुँ गालन लाल गुलाल भर्यौ, अँगिया में दबी है अबीर की झोरी|
अधरामृत रंग तरंग भरे, पिचकारी बनी यै निगाह निगोरी|
ढप-ढोल-मृदंग उमंगन के, रति के रस गीत करें चित चोरी|
तुम फाग की बाट निहारौ व्रुथा, तुम्हैं बारहों मास खिलावहुँ होरी||
[सुन्दरी सवैया]
*
[सुन्दरी सवैया]
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें