मुक्तिका
...संबंध हैं.
संजीव 'सलिल'
*
कांच के घर की तरह संबंध हैं.
हथौड़ों की चोट से प्रतिबंध हैं..
पग उठाये चल पड़े श्रम जिस तरफ.
सफलता के उस तरफ अनुबंध हैं..
कौरवी दरबार सी संसद सजी.
भ्रष्ट मंत्री, दुष्ट सांसद अंध हैं..
प्रशासन वैताल, विक्रम आम जन.
लाड थक-झुक-चुक गए स्कंध हैं..
सृष्टि बगिया लगा माली चुन रहा.
'सलिल' सुरभित सुमन स्नेहिल गंध हैं..
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4 टिप्पणियां:
Pratap Singh द्वारा yahoogroups.com ekavita
pratapsingh1971@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी
हर मुक्तिका बहुत ही सुन्दर !
सृष्टि बगिया लगा माली चुन रहा.
'सलिल' सुरभित सुमन स्नेहिल गंध हैं.. अति सुन्दर !
साधुवाद !
सादर
प्रताप
Om Prakash Tiwari ✆ ekavita
पग उठाये चल पड़े श्रम जिस तरफ.
सफलता के उस तरफ अनुबंध हैं..
- यह पंक्ति सबसे शानदार लगी । सलिल जी को बधाई ।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी
achal verma ✆ ekavita
गागर में सागर भर देने की है झूठी बात नहीं
सभी नहीं भर सकते गागर ऐसी ये बरसात नहीं ||
Your's ,
Achal Verma
kusum sinha ✆ ekavita
priy salil ji
hamesha ki tarah bahut hi sundar rachna ke liye bahut sari badhai
kusum
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