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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

बासंती दोहा ग़ज़ल: -- संजीव 'सलिल'


बासंती दोहा ग़ज़ल: संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा ग़ज़ल  (मुक्तिका)                                                                                                     

संजीव 'सलिल'
*
स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित शत कचनार.
किंशुक कुसुम विहँस रहे, या दहके अंगार..

पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार.
पवन खो रहा होश निज, लख वनश्री श्रृंगार..

महुआ महका देखकर, चहका-बहका प्यार.
मधुशाला में बिन पिए, सिर पर नशा सवार..

नहीं निशाना चूकती, पंचशरों की मार.
पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार..

नैन मिले लड़ मिल झुके, करने को इंकार.
देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार..

मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार.
फागुन में सब पर चढ़ा, मिलने गले खुमार..

ढोलक, टिमकी, मँजीरा, करें ठुमक इसरार.
फगुनौटी चिंता भुला. नाचो-गाओ यार..

घर-आँगन, तन धो लिया, अनुपम रूप निखार.
अपने मन का मैल भी, किंचित 'सलिल' बुहार..

बासंती दोहा ग़ज़ल, मन्मथ की मनुहार.
सीरत-सूरत रख 'सलिल', निर्मल सहज सँवार..

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6 टिप्‍पणियां:

santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

santosh bhauwala ✆ द्वारा returns.groups.yahoo.com ekavita

आदरणीय आचार्य जी बासन्ती दोहे बहुत ही अच्छे लगे सभी प्रेरणास्पद !!!नमन
सादर संतोष भाऊवाला

achalkumar44@yahoo.com ने कहा…

achal verma ✆ ekavita

लग रहा है बिहारी फिर से आगये हैं इस धरा पर
सलिल की धारा बन कर ।

बहुत ही सुन्दर रचना लगी ।

अचल वर्मा

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
taliyn hee taliyan
ekavita

returns.groups.yahoo.com ने कहा…

Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा ekavita

- mstsagar@gmail.com

एक उत्कृष्ट ,साहित्यिक प्रस्तुति
मनभावन ,तनछावन -रचना ,खूब-खूब बधाई |
सादर ,
महिपाल ,२१/२/१२,ग्वालिय

kusumsinha2000@yahoo.com ने कहा…

kusum sinha ✆ ekavita

priy sanjiv ji
aapke doho ki jitni bhi prashansa karun ka hi hai bahut sundar ati sundar aapki vidwata ko shat shat naman
kusum

- mcdewedy@gmail.com - mcdewedy@gmail.com ने कहा…

सुन्दर दोहे.
बधाई सलिल जी.
महेश चन्द्र द्विवेदी