रचना-प्रति रचना:
काश ह्रदय पत्थर का होता
कुसुम सिन्हा
*
काश ह्रदय पत्थर का होता
पाकर चोट न झरते आंसू
नहीं ह्रदय से आह निकलती
प्यार और विश्वास में छल पादिल का शीशा चूर न होता
काश ह्रदय पत्थर का होता
ह्रदय बनाकर यदि वो इश्वर
कठिन प्यार की पीर न देता
पीड़ा से बोझिल न होता
काश ह्रदय पत्थर का होता
निर्विकार सह लेता सुख दुःख काश ह्रदय पत्थर का होता
हाश अश्रु और प्यार न होता
नहीं ह्रदय टुटा करता फिर
नहीं कोई मर मरकर जीता
काश ह्रदय पत्थर का होता
पीड़ा का अभिशाप दिया जो मन तो फूलों सा न बनाता
अंगारों सा मन होता तो
नहीं कोई मर मर कर जीता
काश ह्रदय पत्थर का होता
विरहन चकई की चीखें सुन चाँद कभी आंसू न बहाता
शब्द वाण फिर ह्रदय चीरकर
सारा लहू न अश्रु बनाता
काश ह्रदय पत्थर का होता
*
माननीया कुसुम जी,
आपकी भाव भीनी रचना को पढ़कर कलम से उअतारी पंक्तियाँ आपको सादर समर्पित.
प्रति कविता:
अगर हृदय पत्थर का होता
संजीव 'सलिल'
*
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
खाकर चोट न किंचित रोता,
दुःख-विपदा में धैर्य न खोता.
आह न भरता, वाह न करता-
नहीं मलिनता ही वह धोता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
कुसुम-परस पा नहीं सिहरता,
उषा-किरण सँग नहीं निखरता.
नहीं समय का मोल जानता-
नहीं सँवरता, नहीं बिखरता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
कभी नींव में दब दम घुटता,
बन सीढ़ी वह कभी सिसकता.
दीवारों में पा तनहाई-
गुम्बद बन बिन साथ तरसता..
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
अपने में ही डूबा रहता,
पर पीड़ा से नहीं पिघलता.
दमन, अनय, अत्याचारों को-
देख न उसका लहू उबलता.
अगर हृदय पत्थर का होता...
*
आँखों में ना होते सपने,
लक्ष्य न पथ तय करता अपने.
भोग-योग को नहीं जानता-
'सलिल' न जाता माला जपने..
अगर हृदय पत्थर का होता...
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2 टिप्पणियां:
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० ’सलिल’ जी,
सदैव समान अच्छी कविता के लिए बधाई ।
किसी भी विषय पर आप अच्छा लिख लेते हैं ।
विजय
kusumsinha2000@yahoo.com ekavita
priy sanjiv ji
aapke jaise mahan kavi se sarahna milna bahut badi bat hai mere liye dhanyawad
aapki kavya pratibha ko mera naman
kusum
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