रसानंद दे छंद नर्मदा : १२
ताटंक छंद
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सोलह-चौदह यतिमय दो पद, 'मगण' अंत में आया हो।
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो।।
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ताटंक चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके हर पद में ३० मात्राएँ १६-१४ की यति सहित होती हैं। पंक्त्यांत में 'मगण' आवश्यक है। प्राकृत पैंगलम् तथा छंदार्णव में इसे 'चउबोला' कहा गया है।
सोलह मत्तः बेवि पमाणहु, बीअ चउत्थिह चारि दहा।
मत्तः सट्ठि समग्गल जाणहु. चारि पआ चउबोल कहा।।
मात्रा बाँट: सरस सहज गति-यति के लिये विषम चरण में ४ मात्राओं के चार चौकल तथा सम पद में चार मात्राओं के ३ चौकल + एक गुरु उपयुक्त है।
छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण (मातारा = गुरु गुरु गुरु), सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद।
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)
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उदाहरण -
०१. आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
झूठे वादे करते नेता, किंचित नहीं निभायें क्यों?
सत्ता पा घपले-घोटाले, करें नहीं शर्मायें क्यों?
न्यायालय से दंडित हों, खुद को निर्दोष बतायें क्यों?
जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?
०२. सोरह रत्न कला प्रतिपादहिं, व्है ताटंकै मो अंतै।
तिहि को होत भलो जग संतत, सेवत हित सों जो संतै।।
कृपा करैं ताही पर केशव, दीं दयाला कंसारी।
देहीं परम धाम निज पावन सकल पाप पुंजै जारी।। -जगन्नाथ प्रसाद 'भानु'
०३. कहो कौन हो दमयंती सी, तुम तरु के नीचे सोई।
हाय तुम्हें भी त्याग गया क्या, अलि! नल सा निष्ठुर कोई।।
०४. नृपति भगीरथ के पुरखे जब, तेरे जल को पायेंगे।
मोक्ष-मार्ग पर उछल-उछल वे तेरी महिमा गायेंगे।।
मधुर कंठ से गंगे तेरा, सकल भुवन यश गायेगा।
जब तक सूरज-चाँद रहेगा, तेरा जल लहरायेगा।। - रामदेव लाल 'विभोर'
लावणी (शैलसुता) १६-१४, पदांत बंधन नहीं
०५. शंभु जटा हिमवान से बनी, गंगा लट-लट में बहती।
अपनी अमर अलौकिक गाथा, लिप्त-लपट लट से कहती।।
हर ने कहा अलौकिक गंगे, लट से अब ऊपर आजा।
नृपति भगीरथ के विधान हिट, गिरी कानन में लहरा जा।। - रामदेव लाल 'विभोर'
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