रसानंद दे छंद नर्मदा १४
दोहा, आल्हा, सार ताटंक,रूपमाला (मदन), छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए चौपाई से.
भारत में शायद ही कोई हिन्दीभाषी होगा जिसे चौपाई छंद की जानकारी न हो. रामचरित मानस में मुख्य छंद चौपाई ही है.
शिव चालीसा, हनुमान चालीसा आदि धार्मिक रचनाओं में चौपाई का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है किन्तु इनमें प्रयुक्त भाषा उस समय की बोलियों (अवधी, बुन्देली, बृज, भोजपुरी आदि ) है.
रचना विधान-
चौपाई के चार चरण होने के कारण इसे चौपायी नाम मिला है. यह एक
सम
मात्रिक
द्विपदिक
चतुश्चरणिक
छंद है. इसकी चार चरणों में मात्राओं की संख्या निश्चित तथा समान १६ - १६ रहती हैं. प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं जिनकी अंतिम मात्राएँ समान (दोनों में लघु या दोनों में गुरु) होती हैं. चौपायी के प्रत्येक चरण में १६ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३२ मात्राएँ होती हैं. चौपायी के चारों चरणों के समान मात्राएँ हों तो नाद सौंदर्य में वृद्धि होती है किन्तु यह अनिवार्य नहीं है. चौपायी के पद के दो चरण विषय की दृष्टि से आपस में जुड़े होते हैं किन्तु हर पंक्ति अपने में स्वतंत्र होता है. चौपायी के पठन या गायन के समय हर चरण के बाद अल्प विराम लिया जाता है जिसे यति कहते हैं. अत: किसी चरण का अंतिम शब्द अगले चरण में नहीं जाना चाहिए. चौपायी के चरणान्त में गुरु-लघु मात्राएँ वर्जित हैं. चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए
अर्थात अपन्क्ति का अंत गुरु लघु से न हो
।
चौपाई के चरणान्त में गुरु गुरु, लघु लघु गुरु, गुरु लघु लघु या लघु लघु लघु लघु ही होता है.
मात्रा बाँट - चौपाई में चार चौकल हों तो उसे पादाकुलक कहा जाता है. द्विक्ल या चौकल के बाद सम मात्रिक कल द्विपद या चौकल रखा जाता है. विषम मात्रिक कल त्रिकल आदि होने पर पुन: विषम मात्रिक कल लेकर उन्हें सममात्रिक कर लिया जाता है. विषम कल के तुरंत बाद सम कल नहीं रखा जाता।
उदाहरण:
१. जय गिरिजापति दीनदयाला | -प्रथम चरण
१ १ १ १ २ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
सदा करत संतत प्रतिपाला || -द्वितीय चरण
१ २ १ १ १ २ १ १ १ १ २ २ = १६
मात्राएँ
भाल चंद्रमा सोहत नीके | - तृतीय चरण
२ १ २ १ २ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
कानन कुंडल नाक फनीके || -चतुर्थ चरण -
शिव चालीसा
१
१
१
२ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
२.
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रसानंद दे छंद नर्मदा १४
दोहा, आल्हा, सार ताटंक,रूपमाला (मदन), छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए चौपाई से.
भारत में शायद ही कोई हिन्दीभाषी होगा जिसे चौपाई छंद की जानकारी न हो. रामचरित मानस में मुख्य छंद चौपाई ही है.
शिव चालीसा, हनुमान चालीसा आदि धार्मिक रचनाओं में चौपाई का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है किन्तु इनमें प्रयुक्त भाषा उस समय की बोलियों (अवधी, बुन्देली, बृज, भोजपुरी आदि ) है.
रचना विधान-
चौपाई के चार चरण होने के कारण इसे चौपायी नाम मिला है. यह एक
सम
मात्रिक
द्विपदिक
चतुश्चरणिक
छंद है. इसकी चार चरणों में मात्राओं की संख्या निश्चित तथा समान १६ - १६ रहती हैं. प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं जिनकी अंतिम मात्राएँ समान (दोनों में लघु या दोनों में गुरु) होती हैं. चौपायी के प्रत्येक चरण में १६ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३२ मात्राएँ होती हैं. चौपायी के चारों चरणों के समान मात्राएँ हों तो नाद सौंदर्य में वृद्धि होती है किन्तु यह अनिवार्य नहीं है. चौपायी के पद के दो चरण विषय की दृष्टि से आपस में जुड़े होते हैं किन्तु हर पंक्ति अपने में स्वतंत्र होता है. चौपायी के पठन या गायन के समय हर चरण के बाद अल्प विराम लिया जाता है जिसे यति कहते हैं. अत: किसी चरण का अंतिम शब्द अगले चरण में नहीं जाना चाहिए. चौपायी के चरणान्त में गुरु-लघु मात्राएँ वर्जित हैं. चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए
अर्थात अपन्क्ति का अंत गुरु लघु से न हो
।
चौपाई के चरणान्त में गुरु गुरु, लघु लघु गुरु, गुरु लघु लघु या लघु लघु लघु लघु ही होता है.
मात्रा बाँट - चौपाई में चार चौकल हों तो उसे पादाकुलक कहा जाता है. द्विक्ल या चौकल के बाद सम मात्रिक कल द्विपद या चौकल रखा जाता है. विषम मात्रिक कल त्रिकल आदि होने पर पुन: विषम मात्रिक कल लेकर उन्हें सममात्रिक कर लिया जाता है. विषम कल के तुरंत बाद सम कल नहीं रखा जाता।
उदाहरण:
१. जय गिरिजापति दीनदयाला | -प्रथम चरण
१ १ १ १ २ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
सदा करत संतत प्रतिपाला || -द्वितीय चरण
१ २ १ १ १ २ १ १ १ १ २ २ = १६
भाल चंद्रमा सोहत नीके | - तृतीय चरण
२ १ २ १ २ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
कानन कुंडल नाक फनीके || -चतुर्थ चरण -
१ २ १ १ १ २ १ १ १ १ २ २ = १६
मात्राएँ भाल चंद्रमा सोहत नीके | - तृतीय चरण
२ १ २ १ २ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
कानन कुंडल नाक फनीके || -चतुर्थ चरण -
शिव चालीसा
१
१
१
२ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
२.
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
३.
कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम ||
(
चौपाई छन्द का प्रयोग कर 'चूजे' विषय पर मुक्तिका (हिंदी गजल)
में बाल गीत)
-
४
.
भुवन भास्कर बहुत दुलारा।
मुख मंडल है प्यारा-प्यारा।।
सुबह-सुबह जब जगते हो तुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम।।
-
रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
-
५
. हर युग के इतिहास ने कहा| भारत का ध्वज उच्च ही रहा|
सोने की चिड़िया कहलाया| सदा लुटेरों के मन भाया।।
-
छोटू भाई चतुर्वेदी
-
६
.
मुझको जग में लाने वाले |दुनिया अजब दिखने वाले |
उँगली थाम चलाने वाले |
अच्छा बुरा बताने वाले ||
-
शेखर चतुर्वेदी
-
७
. श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|
नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा|
ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा||
-
मृत्युंजय
-
८
. निर्निमेष तुमको निहारती|
विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी|
तुम चन्दा, मैं एक चकोरी||
-
मयंक अवस्थी
-
९
.मौसम के हाथों दुत्कारे|
पतझड़ के कष्टों के मारे|
सुमन हृदय के जब मुरझाये|
तुम वसंत बनकर प्रिय आये||
-
रविकांत पाण्डे
-
१०
. जितना मुझको तरसाओगे| उतना निकट मुझे पाओगे|
तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो| मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो||
राणा प्रताप सिंह
-
११
. एक दिवस आँगन में मेरे | उतरे दो कलहंस सबेरे|
कितने सुन्दर कितने भोले | सारे आँगन में वो डोले ||
-
शेषधर तिवारी
-
१
२
. नन्हें मुन्हें हाथों से जब । छूते हो मेरा तन मन तब॥
मुझको बेसुध करते हो तुम। कितने अच्छे लगते हो तुम ||
-
धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
-
*******************
३.
कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम ||
(
चौपाई छन्द का प्रयोग कर 'चूजे' विषय पर मुक्तिका (हिंदी गजल)
में बाल गीत)
- ४.भुवन भास्कर बहुत दुलारा। मुख मंडल है प्यारा-प्यारा।। सुबह-सुबह जब जगते हो तुम| कितने अच्छे लगते हो तुम।।-रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
- ५. हर युग के इतिहास ने कहा| भारत का ध्वज उच्च ही रहा| सोने की चिड़िया कहलाया| सदा लुटेरों के मन भाया।। -छोटू भाई चतुर्वेदी
- ६.मुझको जग में लाने वाले |दुनिया अजब दिखने वाले | उँगली थाम चलाने वाले | अच्छा बुरा बताने वाले || -शेखर चतुर्वेदी
- ७. श्याम वर्ण, माथे पर टोपी| नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा| ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा|| -मृत्युंजय - ८. निर्निमेष तुमको निहारती| विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी| तुम चन्दा, मैं एक चकोरी|| -मयंक अवस्थी - ९.मौसम के हाथों दुत्कारे| पतझड़ के कष्टों के मारे|
सुमन हृदय के जब मुरझाये| तुम वसंत बनकर प्रिय आये|| -रविकांत पाण्डे - १०. जितना मुझको तरसाओगे| उतना निकट मुझे पाओगे|
तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो| मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो||राणा प्रताप सिंह - ११. एक दिवस आँगन में मेरे | उतरे दो कलहंस सबेरे|
कितने सुन्दर कितने भोले | सारे आँगन में वो डोले || -शेषधर तिवारी - १२. नन्हें मुन्हें हाथों से जब । छूते हो मेरा तन मन तब॥
मुझको बेसुध करते हो तुम। कितने अच्छे लगते हो तुम || -धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' - *******************
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
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