रसानंद दे छंद नर्मदा : ११ [लेखमाला]- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
असार तज संसार सार गह *
सार नाम के २ छंद हैं. १. मात्रिक २ वार्णिक
१. यौगिक जातीय २८ मात्रिक सार छंद - प्रति पंक्ति २८ मात्रा, १६-१२ पर यति, पंक्त्यांत में २ गुरु। कभी-कभी सरसता के लिए गुरु लघु लघु या लघु लघु गुरु भी कर लिया जाता है।
उदाहरण-
१. धन्य नर्मदा तीर अलौकिक, करें तपस्या गौरा।
२. मातृभूमि हित शीश कटाते, हँस सैनिक सीमा पर।
३. नैन नशीले बिंधे ह्रदय में, मिलन हेतु मन तरसा।
२. वार्णिक सार छंद - ७-७ पर यति
उदाहरण -
१. गाओ गीत, होगी प्रीत जीतो हार, हो उद्धार।
*
मात्रिक सार छंद
दोहा की तरह रचने में सरल तथा पढ़ने, गाने, सुनने में सरस सार छंद यौगिक जाति का द्विपदिक,द्विचरणीय मात्रिक छंद है जिसकी हर पंक्ति में १६-१२ मात्राओं पर यति सहित कुल २८ मात्राएँ होती हैं। पंक्ति के अंत में गुरु गुरु, गुरु लघु लघु अथवा लघु लघु गुरु का विधान है। माधुर्य की दृष्टि से पंक्त्यांत में दो गुरु होना श्रेष्ठ है।
उदाहरण:
०१. सुनिए, पढ़िये, कहिए जी भर, सार छंद सुख देगा।
०२. नहीं सफलता दूर रहेगी, करिए कर्म निरंतर।
०३. भूत लात के बात न मानें, दूर करो सरहद से।
०४. राधा जपती श्याम नाम नित, राधा जपते गिरिधर।
०५. कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! मन बसंत बौराया ।
सुरभित अलसित मधुमय मौसम, रसिक हृदय को भाया ॥कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! वन बसंत ले आयी ।
कूं कूं उसकी प्यारी बोली, हर जन-मन को भायी ॥ -विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ’विनय’
मराठी भाषा का साकी छंद 'सार' पर ही आधारित है।
श्री रघुवंशी ब्रम्ह-प्रार्थित लक्ष्मीपति अवतरला।
विश्व सहित ज्याच्या जनकत्वें, कौशल्या धवतरला।।
सार छंद को लेकर गरमी जनों ने एक रोचक प्रयोग किया है. प्रथम चरण में छन्न पकैया की २ आवृत्ति कर शेष ३ चरण समन्यानुसार कहे जाते हैं।
उदाहरण-
छन्न पकैया छन्न पकैया, बजे ऐश का बाजा,
भूखी मरती जाये परजा, मौज उडाये राजा |
छन्न पकैया छन्न पकैया, सब वोटों की गोटी,
भूखे नंगे दल्ले भी अब ,खायें दारु बोटी |
छन्न पकैया छन्न पकैया, देख रहे हो कक्का,
जितने कि बाहुबली यहाँ पर, टिकट सभी का पक्का |
छन्न पकैया छन्न पकैया, हर जुबान ये बातें
मस्ती मस्ती दिन हैं सारे, नशा नशा सी रातें |
छन्न पकैया छन्न पकैया, डर के पतझड़ भागे
सारी धरती ही मुझको तो, दुल्हन जैसी लागे |
छन्न पकैया छन्न पकैया, बात बनी है तगड़ी
बूढे अमलतास के सर पर, पीली पीली पगड़ी | -योगराज प्रभाकर
भूखी मरती जाये परजा, मौज उडाये राजा |
छन्न पकैया छन्न पकैया, सब वोटों की गोटी,
भूखे नंगे दल्ले भी अब ,खायें दारु बोटी |
छन्न पकैया छन्न पकैया, देख रहे हो कक्का,
जितने कि बाहुबली यहाँ पर, टिकट सभी का पक्का |
छन्न पकैया छन्न पकैया, हर जुबान ये बातें
मस्ती मस्ती दिन हैं सारे, नशा नशा सी रातें |
छन्न पकैया छन्न पकैया, डर के पतझड़ भागे
सारी धरती ही मुझको तो, दुल्हन जैसी लागे |
छन्न पकैया छन्न पकैया, बात बनी है तगड़ी
बूढे अमलतास के सर पर, पीली पीली पगड़ी | -योगराज प्रभाकर
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