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मंगलवार, 19 जनवरी 2016

navgeet

नवगीत:
बाहर बाज, बहेलिया
*
बाहर बाज, बहेलिया
बैठे पहरेदार
*
जन-मन गौरैया विवश
कैसे भरे उड़ान?
सत्ता सूरज के लिये
हर पल नया विहान
स्वार्थ सियासत बन गयी
देश-काल पर भार
बाहर बाज, बहेलिया
बैठे पहरेदार
*
आम आदमी परेशां
जीना है दुश्वार
असहनीय है करों का
दिन-दिन बढ़ता भार
नेह हुआ नीलाम क्यों
बिका टकों में प्यार?
बाहर बाज, बहेलिया
बैठे पहरेदार
*
बंदरबाँट मची हुई
सभी चाहते श्रेय
अँधा बाँटे रेवड़ी
चीन्ह-चीन्ह कर देय
सागर में शक्कर घुली
मिला शहद में खार
बाहर बाज, बहेलिया
बैठे पहरेदार
*

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