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शनिवार, 30 जनवरी 2016

doha salila

दोहा सलिला
*
दो दुमिया दोहे

*
बागड़ खाती खेत को
नदिया निगले घाट,
मुश्किल में हैं शनिश्चर
मारा धोबी-पाट।
दाँव नारी ने भारी
दिखाती अद्भुत लाघव।।
*
आह भरे दरगाह भी
देख डटीं खातून,
परंपरा के नाम पर
अधिकारों का खून।
अब नहीं होने देंगी
नहीं मिट्टी की  माधव।।
*
ममता ने ममता तजी
पा कुर्सी का संग,
गिरगिट भी बेरंग है
देख बदलते रंग।
जला-पुतवा दे थाना
सगे अपराधी नाना।।
*
केर-बेर के संग सा
दिल्ली का माहौल,
नमो-केजरी जमाते
इक दूजे को धौल।
नहीं हम-तुम बदलेंगे
प्रजा को खूब छलेंगे।।
*
टैक्स लगते नित नये
ये मामा शिवराज,
माहुल, शकुनी, कंस के
बन बैठे सरताज।
जान-जीवन दूभर हुआ
आप उड़ाते हैं पुआ।।
*
टेस्ट जीत लो यार तुम
ट्वंटी हम लें जीत,
दोनों की जयकार हो
कैसी सुन्दर रीत?
बजाये जनता ताली
जेब अपनी कर खाली।।
*
मिर्ज़ा या नेहवाल हो
नारी भारी खूब,
जड़ें रखे मजबूत यों
जैसे नन्हीं दूब।
झूलन-झंडा फहरता
ऑस्ट्रेलिया दहलता।।
***



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