लघुकथा-
बेदाग़
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उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए उससे पूर्व की परीक्षा में उतीर्ण होना पर्याप्त होते हुए भी शासन-प्रशासन ने मिलकर प्रवेश परीक्षा का प्रावधान कर दिया। जनतंत्र में जनमत की अभिव्यक्ति करते जनविरोध की अनदेखी कर परीक्षा थोप दी गयी और मरता क्या न करता की लोकोक्ति को क्रियान्वित करते किशोर परीक्षा देने लगे। क्रमश: परीक्षा में गडबडी की खबरें फैलने लगीं। हाथ कंगन को आरसी क्या? परीक्षा में न बैठनेवाले भी उत्तीर्ण होकर चिकित्सक बनने लगे तो जाँच आयोग का गठन करने के लिए सरकार बाध्य हो गयी।
जाँच प्रक्रिया आगे बढ़ने के साथ ही गवाहों के मरने की गति बढ़ती गयी। अंतत:, गवाहों की मौतों की जाँच आरम्भ कर दी गयी जिसने सभी मौतों को स्वाभाविक बताने में देर नहीं की गयी। जितने नेता और अफसर कारावास भेजे गए थे उन्हें शिकायत का स्पर्श हुए बिना बेदाग़ घोषित कर दिया गया.
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