एक रचना-
*
दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
*
जनप्रतिनिधि अपने ही
भत्ता बढ़वाते।
खेत के पसीने को
मंडी भिजवाते।
ज्ञान - श्रम को बेच
आजीविका कमाते-
जो उन पर बढ़ा - बढ़ा
कर नित लगवाते।
थाने में सज्जन ज्यों
लूट के शिकार-
दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
*
लाठी - गोली खाई
थाम कर तिरंगा।
जिसने वह आज फिरे
भूखा - अधनंगा।
मत ले, जन - जन को ठग
नेता मुस्काते-
संसद में शोहदों सा
करते हैं दंगा।
थाने जलवा हँसती
बेहया सियासत-
जनमत को भेज रही
हुकूमत तिहाड़
दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
*
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दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
*
जनप्रतिनिधि अपने ही
भत्ता बढ़वाते।
खेत के पसीने को
मंडी भिजवाते।
ज्ञान - श्रम को बेच
आजीविका कमाते-
जो उन पर बढ़ा - बढ़ा
कर नित लगवाते।
थाने में सज्जन ज्यों
लूट के शिकार-
दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
*
लाठी - गोली खाई
थाम कर तिरंगा।
जिसने वह आज फिरे
भूखा - अधनंगा।
मत ले, जन - जन को ठग
नेता मुस्काते-
संसद में शोहदों सा
करते हैं दंगा।
थाने जलवा हँसती
बेहया सियासत-
जनमत को भेज रही
हुकूमत तिहाड़
दिल मरुथल चमन हुआ
रूप को निहार
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